उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली Story Historical by TeamYouthuttarakhand - January 11, 2018January 12, 2018 8 अगस्त 1661 में जन्मी पहाड़ की बेटी वीर वीरांगना तीलू रौतेली सत्रहवीं शताब्दी के उतरार्ध में गुराड गाँव परगना चौंदकोट गढ़वाल में जन्मी अपूर्व शौर्य संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में झांसी की रानी कहकर याद किया जाता है ! 15 से 20 वर्ष की आयु के मध्य सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है ! 5 से 20 वर्ष की आयु के मध्य सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है. इतिहास के अनुसार 9वीं शताब्दी तक कत्यूरी राजवंशीय प्रभाव कुमायूँ-गढ़वाल में चरमोत्कर्ष पर था। सन 740 से 1000 ई. तक उनकी राजधानी जोशीमठ फिर कार्तिकेयपुर, (कत्यूर) तथा बाद में बागेश्वर रही। गरुड़, बैजनाथ तथा अन्य पर्वतीय उपत्यकाओं में आज भी यत्र-तत्र बिखरे प्राचीन मन्दिर कत्यूरी राजाओं के वैभव की कहानी कहते हैं। परन्तु उत्थान के बाद पतन प्रकृति का नियम है। इसी नियम के अनुसार बाद में गढ़वाल के पाल नरेशों तथा कुमायूँ के चन्द राजाओं ने कत्यूरे मार भगाए तो वे खैरागढ़, रामगंगा आदि उपत्यकाओं एवं दक्षिणी पूर्वी गढ़वाल में गढ़ बनाकर लूटपाटकर जनता पर अत्याचार करने लगे।तीलू रौतेली थोकदार वीर पुरुष भूपसिंह गोलार की पुत्री थी जो गढ़वाल नरेश की सेना में थे।,15 वर्ष की आयु में तीलू रौतेली की मंगनी इडा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के भुप्पा नेगी के पुत्र के साथ हो गयी थी !यह वही समय था जब कत्यूरी लुटेरे बनकर जनता पर अत्याचार कर रहे थे। राजा मानशाही ने गंगू गोर्ला को कत्यूरों के दमन का आदेश दिया। कत्यूरी राजा धामाशाही और खैरागढ़ के मानशााही के मध्य होने वाले संघर्ष में राजाज्ञापालन तथा गढ़वाल की रक्षा में गंगू गोर्ला, उनके दोनों वीर पुत्र, समधी भूम्या नेगी, जवांई भवानिसिंह नेगी और अन्य बहुत से शूर शिरोमणि बलिदान हो गए! अनेक वीर प्राणों की होली खेल गए परन्तु कत्यूरियों का आतंक बन्द नहीं हुआ। गढ़वाल की प्रजा हाहाकार करती घोर अन्याय सह रही थी। नियति की कुरुर हाथों तीलू के पिता मंगेदर और दोनों भाइयों के युद्ध भूमि प्राण न्योछावर हो गए थे.काँडा के मैदान में जहाँ उसके पिता और भाइयों का वध हुआ था, तभी से प्रतिवर्ष लगनेे वाला मेला होने वाला था। किशोरी तीलू ने सखियों के साथ मेले में जाने की माता से आज्ञा माँगी तो अपने परिजनों की (युद्ध में पड़ी) आहुतियों से आक्रोशित माता मैणावती ने बेटी तीलू को अन्यायी राजा धामशाही का रक्त लाने को कहा। माँ के वचनबाणों से मर्माहत तीलू ने तलवार निकालकर पिता और भाइयों का प्रतिशोध लेने का प्रण किया।प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था,शास्त्रों से लेस सैनिकों तथा “बिंदुली” नाम की घोड़ी और दो सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्ध के लिए प्रस्थान किया! सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कत्यूरियों से मुक्त करवाया ! उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला फिर वह अपने सैन्य दल के साथ “सल्ट महदेव” पंहुची वहां से भी शत्रु दल को भगाया,इस जीत के उपरान्त तीलू ने “भिलण भौण” की ओर प्रस्थान किया तीलू दो सहेलियों ने इसी युद्ध में मिर्त्यु का आलिंगन किया था वीरांगना तीलू रौतेली चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आई ! कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, विरोंखाल के युद्ध में तीलू के मामा “रामू भंडारी तथा सराईखेत युद्ध में तीलू के पिता भूपू ने युद्ध लड़ते -लड़ते अपने प्राण त्याग दिए थे सराईखेत में कई कत्युरी सैनिको को मोत के घाट उतार तीलू अपने पिता की मिर्त्यु का बदला लिया इसी जगह पर तीलू की घोड़ी “बिंदुली ” भी सत्रु दल का निशाना बनी, है शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ, तल्ला कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ। गढ़वाल में 8 अगस्त को उनकी जयंती मनायी जाती है उनकी याद में आज भी कांडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथीग (मेला) आयोजित करते हैं और ढ़ोल-दमाऊ तथा निशाण के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। तीलू रौतेली की स्मृति में गढ़वाल मंडल के कई गाँव में थड़िया गीत गाये जाते हैं। वीरांगना जिसका आज भी रणभूत नचाया जाता है तो अन्य बीरों के रण भूत /पश्वा जैसे शिब्बूपोखरियाल, घिमंडू हुडक्या, बेलु -पत्तू सखियाँ , नेगी सरदार आदि के पश्वाओंको भि नचाया जाता है . सबके सब पश्वा मंडांण में युद्ध नृत्य के साथ नाचते हैं ओ कांडा का कौथिग उर्यो ओ तिलू कौथिग बोला धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे द्वी वीर मेरा रणशूर ह्वेन भगतु पत्ता को बदला लेक कौथीग खेलला धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे शेयर करें ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारे पूर्वजों की अमर गाथा सदा के लिए अमर हो जाऐं देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथ उत्तराखंड के संग Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share