बैजनाथ धाम – उत्तराखंड बागेश्वर Spiritual by TeamYouthuttarakhand - March 25, 2017December 27, 2017 बागेश्वर का बैजनाथ मंदिर सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यहाँ बागेश्वर नाथ की प्राचीन मूर्ति है जिसे स्थानीय जनता बाघनाथ के नाम से जानती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत ‘शिव हेरिटेज सर्किट’ से जोड़ा जाना है।मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है। यह मंदिर गरुड़ से 2 किमी की दूरी पर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है। बैजनाथ मन्दिर लगभग 1000 साल पुराना है इस मंदिर के बारे में कहते है कि यह मन्दिर सिर्फ एक रात में बनाया गया था । बैजनाथ उत्तराखंड का काफी महत्वपूर्ण एवम् ऐतिहासिक स्थल है। कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ गोमती नदी के तट पर स्थित है । पर्यटकों के लिए यहां का सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र 12वीं सदी में निर्मित शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर, सूर्य मंदिर हैं । यहां पत्थर के बने हुए कई मन्दिर हैं , जिनमें मुख्य मन्दिर भगवान शिव का है। यहां पर माता पार्वती जी की एक आदम कद मूर्ति है उसी के आगे शिवलिंग बना हुआ है। बैजनाथ उत्तराखंड का काफी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ गोमती नदी के तट पर स्थित है। पर्यटकों के लिए यहां का सर्वाधिक आकर्षण के केन्द्र 12वीं सदी में निर्मित शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर, सूर्य मंदिर हैं। पुरा कथाओं में भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने वाले इस स्थान को व्याघ्रेश्वर तथा बागीश्वर से कालान्तर में बागेश्वर के रूप में जाना जाता है कत्यूरी राजाओं ने कराया निर्माण यह मंदिर सन् 1150 का बनाया गया था। जिसे कत्यूरी राजाओं ने बनवाया था। यहां पत्थर के बने हुए कई मन्दिर हैं जिनमें मुख्य मन्दिर भगवान शिव का है। बागनाथ मंदिर शिव जी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। अल्मोड़ा के राजा लक्ष्मी चंद ने १४५० ईस्वी में इसका निर्माण कराया था। ऐसी मान्यता है कि शिव और पार्वती ने गोमती व गरुड़ गंगा नदी के संगम पर विवाह रचाया था। बैजनाथ शहर को पहले कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था, जो 12वीं और 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी। शेयर करें ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके। हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके। देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथ उत्तराखंड के साथं ! Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share