Karkotak Nag Devta Temple Bhimtal कर्कोटक नागराज मंदिर 🙏🚩🚩🚩🚩 Spiritual by TeamYouthuttarakhand - January 11, 2023January 11, 2023 भीमताल का मुकुट कहे जाने वाले करकोटक मंदिर में हर साल ऋषि पंचमी को मेले का आयोजन होता है. ऋषि पंचमी के दिन ही करकोटक नागराज का जन्म हुआ था. भक्त काफी तादाद में यहां आकर नाग देवता के दर्शन करते और दूध चढ़ाते हैं.शिव पुराण में भी कर्कोटक नाग का वर्णन किया गया है. नाग पंचमी के दिन मंदिर में श्रद्धालु नागराज को दूध चढ़ाते हैं, लेकिन यहां प्रमुख मेला हर साल ऋषि पंचमी के दिन ही लगता है.इस मंदिर तक पहुंचने के लिए खुटानी तिराहे से 2 किमी दूर विनायक से पांडे गांव होते हुए करीब 3-4 किलोमीटर चढ़ाई चढ़नी पड़ती है.भगवान सर्प के काटने से भक्तों की रक्षा करते हैं । सर्प देवता, नाग कर्कोटक महाराज के प्रति समर्पित, तीर्थयात्री ऋषि पंचमी के अवसर पर बड़ी संख्या में आते हैं। मां कैंचुला देवी का मंदिर भीमताल के ताल से सटा है. कहा जाता है कि कर्कोटक नागराज ऊंची चोटी पर विराजमान हैं और उनकी पूछ नीचे भीमताल झील के नजदीक कैंचुला देवी मंदिर के समीप है. प्रांगण से भीमताल और नौकुचियताल का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई देता है यहाँ से आप छोटा कैलाश पर्वत के दर्शन भी कर सकते है पांडे गांव तक बाइक या गाड़ी से आ सकते है यहाँ से पैदल 1 से 1.5 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ कर आ सकते है ! चढ़ाई चढ़ने पर यहाँ बीच बीच में विश्राम स्थल भी बनाये गए है ! अगर आप यहाँ आते है तो अपने साथं पानी लेकर जाये कर्कोटक नाग और नल दमयंती ताल के बीच गहरा संबंध रहा है. कर्कोटक पानी पीने के लिए नल दमयंती ताल तक जाते थे. शिवपुराण में भी कर्कोटक नाग का वर्णन किया गया है. नाग पंचमी के दिन मंदिर में श्रद्धालु नागराज को दूध चढ़ाते हैं, लेकिन यहां प्रमुख मेला हर साल ऋषि पंचमी के दिन ही लगता है. हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्कोटक नागों का एक राजा था जिसने इन्द्र के अनुरोध पर नल को काटा था। इस दंश के फलस्वरूप नल ऐंठनयुक्त तथा कुरूप हो गये। कर्कोटक ने नारद को धोखा दिया था जिससे क्रोधित होकर नारद ने उसे शाप दिया जिससे वह एक कदम भी नहीं चल पाता था। कर्कोटक, नल का मित्र था। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे। नारद के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को ही डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। शिव जी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं एवं भगवान सारे भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं , हमारा एकमात्र प्रयास है अपनी लोकसंस्कृति को विश्वभर में फैलाना। जय देवभूमि उत्तराखंड। शेयर और कमेंट करना न भूले | शेयर करें ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके ॥। देवभूमि उत्तराखंड के रंग यूथ उत्तराखंड के संग Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share