परम पवित्र देवभूमि ‘जागेश्वर धाम‘ Spiritual by TeamYouthuttarakhand - July 20, 2018July 23, 2018 जागेश्वर धाम सबसे विशाल एवं सुंदर मंदिर है। यह देवभूमि हिमालय पर अल्मोड़ा में स्थित है जहां भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग जागेश्वर स्थित है। जागेश्वर का प्राचीन मृत्युंजय मंदिर धरती पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों का उद्गम स्थल है। 12 ज्योर्तिलिंगों में प्रथम ज्योर्तिलिंग है जागेश्वर, यहीं से शुरू हुई दुनिया में शिव लिंग की पूजा पर्वत के ऊँचे शिखरों, देवदार की वादियों तथा कलकल करती नदी के तट परम पवित्र देवभूमि ‘जागेश्वर’ का अपना ही अलौकिक सौंदर्य है। अल्मोड़ा (उत्तरांचल प्रदेश) से ३४ कि.मी. की दूरी पर बसी, फूलों, तितलियों और देवदार के साये में पली ये वादी अपनी अद्वितीय सुंदरता का साक्षात प्रमाण है। जागेश्वर धाम के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। मुख्य मंदिर परिसर में करीब 125 प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इनमें 108 मंदिर भगवान शिव के हैं जबकि 17 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को यहाँ मुख्य मंदिर का दर्जा दिया जाता है. सुर, नर, मुनियों द्वारा भगवान शिव के पूजन से इस जाग्रत स्थान का नाम जागेश्वर पड़ा होगा. हमारे धार्मिक ग्रंथों में खासकरस्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया गया है । लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। इतना ही नहीं जागेश्वर मंदिर समूह पूर्व में कोटेश्वर, पश्चिम में डंडेश्वर, उत्तर में वृद्ध जागेश्वर व दक्षिण में झांकर सैम मंदिर से घिरा हुआ है और ये सभी स्थान बहुत ही प्राचीन और अपना अध्यात्मिक महत्व रखते हैं. देवाधिदेव महादेव यहां आज भी वृक्ष के रूप में मां पार्वती सहित विराजते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव-पार्वती के युगल रूप के दर्शन यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित नीचे से एक और ऊपर से दो शाखाओं वाले विशाल देवदारू के वृक्ष में करते हैं। जो 62.80 मीटर लंबा और 8.10 मीटर व्यास का है, जिसे अति प्राचीन बताया जाता है। भगवान शिव ही एकमात्र देवता हैं, जिन्होंने सदैव मृत्यु पर विजय पाई। मृत्यु ने कभी भी शिव को पराजित नहीं किया। इसी कारण उन्हें मृत्युंजय के नाम से पुकारा गया। जागेश्वर धाम के मंदिर समूह में सबसे विशाल एवं सुंदर मंदिर महामृत्युंजय महादेव जी के नाम से विख्यात है। इतिहास उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग 150 छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी स्लैबों से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया जय बाबा भोलेनाथ Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share