गॊलू दॆवता ~ न्याय के देवता Spiritual story Story Historical by TeamYouthuttarakhand - January 28, 2018January 30, 2018 उत्तराखंड के गोलू देवता न्याय के देवता हैं। अल्मोड़ा, चंपावत और घोड़ाखाल में इनका पवित्र मंदिर स्थित है। जब लोगों की मुराद पूरी हो जाती है तो वह मंदिर में घंटियां चढ़ाकर जाते हैं। इन मंदिरों में लगी अनगिनत घंटियां यहां से किसी के भी खाली हाथ न जाने की गवाही देती हैं। गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से चार किमी दूर और अल्मोड़ा से दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है।हमारे पहाड़ मे इस मंदिर और गोलू देवता के लिए काफ़ी आस्था है. इस कामना पूर्ति मंदिर मे आकर सिर्फ़ पहाड़ी लोगों को ही नही अपितु देश विदेश के लोगों को उनका मनचाहा वरदान मिला है. और शायद यही वजह है की इसकी प्रसिद्धि रोज़ बढ़ती ही जा रही है. गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से चार किमी दूर और अल्मोड़ा से दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। Source-Jai Golu Devta Ji Facebook page गोलू देवता की कहानी भी बेहद अनोखी है। गोलू देवता न्याय के देवता, श्री ग्वेल ज्यू बाला गोरिया, गौर भैरव, ग्वेल देवता के रूप में प्रसिद्व है। इनके मंदिर चम्पावत, चितई (अल्मोड़ा) तथा घोड़ाखाल (नैनीताल) में है। इनकी कथा कुछ इस प्रकार बतायी जाती है। जनश्रुतियों के अनुसार चम्पावत में कत्यूरी व बंशीराजा झालूराई का राज था। इनकी सात रानियां थी लेकिन वे नि:सन्तान थे। राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया। भगवान भैरव ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे यहां रानी से जन्म लूंगा। एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी। दूर एक तालाब देखकर राजा ने ज्यों ही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया, ‘यह तालाब मेरा है। तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नहीं पी सकते।’ राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा- मैं गढ़ी चम्पावत का राजा हूं। मैं आपका परिचय जानना चाहता हूं। तब उस नारी ने कहा- मैं पंच देव देवताओं की बहन कलिंगा हूं। राजा ने उसके साथ शादी की। रानी कलिंगा गर्भवती हुई। राजा प्रसन्न हुआ पर उसकी बाकी सात रानियों को जलन हुई। रानी कलिंगा ने बालक को जन्म दिया पर सातों रानियों सिल बटटे को रानी कलिंगा को दिखाकर कहा कि तुमने उसे जन्म दिया है। बालक को एक लोहे के संदूक में लिटाकर काली नदी में बहा दिया। वह संदूक गोरीघाट में पहुंचा। गोरीघाट पर भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फंस गया। मछुवारा नि:संतान था, इसलिए उसने बालक को भगवान का प्रसाद मान कर पाल लिया। एक दिन बालक ने अपने असली माँ-बाप को सपने में देखा। उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया। एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहये। निर्धन मछुवारा कहां से घोड़ा ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिए काठ का घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी था। उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठकर दूर-दूर तक घूमने जाने लगा। एक बार घूमते-घूमते वह राजा झालूराई की राजधारी धूमाकोट में पहुंचा। घोड़े को एक जलाशय के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बातचीत कर रही थीं और रानी कलिंगा के साथ किए गए अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी कि बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक दूसरे को बढ़ चढ़ कर सुना रही थी। उनकी बात सुनकर, बालक को अपना सपना सच लगने लगा। वह अपने काठ के घोड़े को लेकर जलाशय के पास गया और रानियों से कहने लगा, ‘पीछे हटिये- पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है।’ सातों रानियां उसकी बेवकूफी भरी बातों पर हंसने लगी और बोली, ‘कैसे बेवकूफ हो। कहीं काठ का घोड़ा पानी भी पी सकता है।’ बालक ने तुरन्त पूछा, ‘क्या कोई स्त्री पत्थर (सिल-बट्टे) को जन्म दे सकती है?’ सभी सातों रानियों डर गयी और राजमहल जा कर राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी। राजा ने बालक को पकड़वा कर पूछा, ‘यह क्या पागलपन है तुम एक काठ के घोड़े को कैसे पानी पिला सकते हो?’ बालक ने उत्तर दिया, ‘महाराज यदि आपकी रानी सिलबट्टा (पत्थर) पैदा कर सकती है, तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है।’ उसके बाद उसने अपने जन्म की घटनाओं का पूरा वर्णन राजा के सामने किया और कहा,’न केवल मेरी मां कलिंगा के साथ अन्याय हुआ है पर महराज आप भी ठगे गए हैं।’ राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आज्ञा दी। सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किए की क्षमा मांगने लगी और रोने गिड़गिड़ाने लगीं। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भाँति जीवन-यापन करने के लिए छोड़ दिया। कहा जाता है कि यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू बाला, गोरिया, तथा गौर भैरव नाम से प्रसिद्व हुआ है। ग्वेल नाम इसलिए पड़ा कि उन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रूप में रक्षा की। चमोली में गोलू देवता को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। चमोली में नौ दिन के लिए गोलू देवता की विशेष पूजा की जाती है। इन्हें गौरील देवता के रूप में भी जाना जाता है। गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से चार किमी दूर और अल्मोड़ा से दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि वह कत्यूरी के राजा झाल राय और कलिद्रा की बहादुर संतान थे। ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता का मूल स्थान चम्पावत में स्वीकार किया गया है।एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई।चमोली में गोलू देवता को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। चमोली में नौ दिन के लिए गोलू देवता की विशेष पूजा की जाती है। इन्हें गौरील देवता के रूप में भी जाना जाता है। गोलू देवता मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इस मंदिर की स्थापना के विषय में विद्वानों में कई मतभेद हैं। गोलू देवता उत्तराखंड राज्य के कुमायूँ के एक इतिहास देवता है। कुमायूँ में अनेक स्थानों पर गोलू देवता के मन्दिर है, जहां लोग अपनी अर्जी लगा कर न्याय मांगते है। गोलू देव मन्दिर, चेतई, अल्मोड़ा चम्पावत गोलू मन्दिर, चम्पावत घोराखाल गोलू मन्दिर, घोडाखाल तारीखेत गोलू मन्दिर, ताडीखेत नैनीताल जिले के भवाली में स्थित गोलू देवता के मंदिर में चिट्ठियों की भरमार देखने को मिलती है। प्रेम विवाह के लिए युवक-युवती गोलू देवता के मंदिर में जाते हैं। मान्यता है कि यहां जिसका विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। गोलू देवता उत्तराखंड के न्याय के देवता हैं। नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में प्रसिद्घ गोलू देवता का मंदिर घंटियों से सुशोभित है। जिन्हें कहीं से न्याय न मिले वह गोलू देवता की शरण में पहुंचते हैं और लोगों का मानना है कि यह देवता न्याय करते ही हैं। यहां स्टांप पेपर पर लिखकर लोग मन्नतें मांगते हैं और मन्नतें पूरी होने पर भगवान को धन्यवाद, घंटियां चढ़ाकर दी जाती है। गोलू देवता के प्रति लोगों की आस्था ये घंटियां ही बयां करती हैं। कई घंटियां तो 50-60 या उससे भी ज्यादा पुरानी हैं।मन्नत पूरी हो जाने पर श्रद्धालू यहाँ प्रसाद के अलावा घंटियाँ चढ़ाते हैं. Source- youthuttarakhandघोड़ाखाल में प्रसिद्घ गोलू देवता का मंदिर घंटियों से सुशोभित ❤ ♥ ❣ नैनीताल जिले के भवाली में स्थित गोलू देवता के मंदिर में चिट्ठियों की भरमार देखने को मिलती है। प्रेम विवाह के लिए युवक-युवती गोलू देवता के मंदिर में जाते हैं। मान्यता है कि यहां जिसका विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। युथ उत्तराखंड टीम द्वारा बनाये इस वीडियो नैनीताल घोड़ाखाल प्रसिद्घ गोलू देवता मंदिर के दर्शन है घोड़ाखाल प्रसिद्घ गोलू देवता का मंदिर घंटियों से सुशोभित है। एक बार जरूर देखे Golu Devta- God Of Justice In Uttarakhand आपका दिन मंगलमय हो गोलू देवता || जय ईष्ट देवता जय गोलू देवता || ऊं गोल्ल देवाय नमः।। अपने उत्तराखंड को और अच्छे से जानने के लिए और अपनी पहाड़ी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए युथ उत्तराखंड टीम से जुड़े रहे | आप हमे फेसबुक (youthuttarakhand) ट्विटर (UthUttarakhand) यूट्यूब (youthuttarakhand) के माध्यम से जुड़ सकते है उत्तराखंड से जुडी जानकरी आप हमे मेल के द्वारा भेज सकते है infoyouthuttarakhand@gmail.com शेयर और कमेंट करना न भूले | शेयर करें ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके ॥। देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथ उत्तराखंड के साथ🙏 Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share