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काफल ( पहाड़ी फल)

उत्तराखण्ड देवभूमि का बहुचर्चित फल काफल के नाम सुनते ही मुँह में पानी आ जाता है
Kafal काफल ( पहाड़ी फल) देवभूमि में काफल न खाया तो क्या खाया… कहते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो उसकी यात्रा अधूरी है. ऐसे ही फलों में एक बेहद लोकप्रिय नाम है- काफल. एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है. काफल एक जंगली फल है. इसे कहीं उगाया नहीं जाता, बल्कि अपने आप उगता है और हमें मीठे फल का तोहफा देता है.
काफल शुरू में हरा होता है जबकि बाद में लाल तो कुछ कुछ काल, मटमैले और बैंगनी से बन जाते हैं। जब यह हरा होता है तो इसका स्वाद खट्टा जबकि पकने पर मीठा होता है। काफल गुच्छों में लगता है। कच्चे काफलों की चटनी बनायी जाती है जो बहुत स्वादिष्ट होती है।काफल का पेड़ अनेक प्राकृतिक गुणों से भरपूर है। दाँतून बनाने से लेकर, अन्य चिकित्सकीय कार्यां में इसकी छाल का उपयोग होता रहा है।

बेडु पाको बारों मासा नरेणी काफल पाको चैता मेरी छैला‘ उत्तराखंड का बहुत ही प्रसिद्ध सदाबहार कुमाऊँनी लोकगीत है जो पूरे विश्व में चर्चित है। कुमाऊँ की लोक संस्कृति पर आधारित यह लोकगीत हर किसी की जुबान पर सुनने को मिल सकता है। जिसमें यह बताया जा रहा है कि बेडु फल साल के बारों महीने पकता है और काफल केवल चैत के महीने में पकता है। “बेड़ू पाको बारों मासा, ओ नरेण काफल पाको चैता मेरी छैला” !

गर्मी के मौसम में किसी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए दिखाई देते हैं.
काफल को समझते हैं देवताओं के योग्य
कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है
देवभूमि उत्तराखंड में उगने वाला काफल अपनी खूबियों से सहज ही लोगों को आकर्षित कर लेता है

काफल की एक कथा जो हमारे यहाँ प्रचलित है

काफल पाको मैन नी चाखौ
दो पक्षियों की मार्मिक कहानी,
बेटी कहती है मुझे काफल खाने हैं। माँ कहती है कि दिन में काफल की चटनी बनाकर उसमें रोटी खाएँगे।
माँ खेत में चली जाती है बच्ची काफल खाने के सपने देखती है।दिन की गर्मी से काफल सिकुड़ कर कम हो जाते हैं। वापस आने पर माँ सोचती है कि बेटी ने काफल खा लिये। बेटी कहती है कि मुझे मेरे मरे हुए पिता की कसम मैने काफल नहीँ खाए। माँ गुस्से में उसे धक्का देती है और बेटी मर जाती है। जब शाम को काफल नमी पाकर फिर से फूल जाते है तो माँ को अपनी बेटी के निर्दोष होने का प्रमाण मिलता है। माँ भी तड़प तड़प कर प्राण त्याग देती है। दोनों बन जाते है पक्षी काफल के सीजन में एक पक्षी अपनी करुण पुकार करता है

*काफल पाको मैं नि चाखो*
काफल पके पर माँ मैने नहीँ चखे
दूसरा पक्षी तुरंत बोल पड़ता है।
*पूरै पूर पूरै पूर*
पूरे हैं बेटी पूरे हैं

दगिड़ियो आपलू भी ज़रूर खाई होलू काफल!!अगर नी खाई होलू त ज़रूर काफल खाने इस बार के सीज़न में जाणु नी भूलिया

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देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथ उत्तराखंड के संग🙏

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