You are here
Home > Spiritual > मां रशुलन दीबा मन्दिर

मां रशुलन दीबा मन्दिर

मां_रशुलन_दीबा_मन्दिर….उत्तराखण्ड में स्थित विश्व का इकलौता मन्दिर जहां रात भर नंगे पांव कठिन चढ़ाई चढ़कर प्रात:काल दर्शन किये जाते हैं
माँ रशुलन दीबा का ये मंदिर पौड़ी के पट्टी किमगडी गढ़ पोखरा ब्लॉक के झलपड़ी गावं के ऊपर घने जंगल से होते हुए रशुलन दीबा माता मंदिर पड़ता है यदि आप भी दीबा माता के दर्शन को आना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले पौड़ी जिले के कोटद्वार शहर पहुँचना पड़ता है कोटद्वार से निकलते हुए आपको अब सतपुली बाज़ार पहुँचना होता है इसके लिए बस और टेक्सी दोनों मिल जाती हैं रास्ते में घुमखाल, लेंसडॉन छावनी के मनमोहक रास्तों से गुजरना होता है.
इसके अलवा ऋषिकेश की और से आने वाला रास्ता जो देवप्रयाग होते हुए सतपुली पहुंचता है ये रास्ता तब के लिए है जब आप ऋषिकेश से ऊपर की और आ रहे होंगे सतपुली से आपको चौबट्टाखाल गवानी आना पड़ता है जहाँ से झालपड़ी गावं नजदीक पड़ता है झालपड़ी गावं से रास्ता यह करीब 15 किलोमीटर दूरी पर है
झाल्पड़ी गावं से रास्ता जंगल के रास्ते होकर दुर्गम पहाड़ी से होकर माता के मंदिर पहुंचता है जीवन का यह पल यादगार होता है लोग यहाँ का सफ़र रात में करते हैं क्योंकि माना जाता है की यहाँ से सूर्य भगवान के अद्दभुत, अकल्पनीय दर्शन होते हैं
इस जगह पर सुबह के 4 बजे शुर्योदय के दर्शन होते है हिमालय और कैलास पर्वत के बीच से जब सूरज निकलता है तो वह तीन रंगों में अपना स्वरुप बदलता है भगवान सूर्य का यह रूप अनोखा होता है जसमे पहले लाल रंग, फिर केसरिया और अंत में चमकीले सुनहरे रंग में आता है भगवान सूर्य के इस विलक्षण रूप को देखने के लिए लोग यहाँ रात को ही बसेरा लगा देते हैं इतना ही नहीं माता रानी के आशीर्वाद से रात को यहाँ के जंगलों से आदमी अकेला भी गुजर जाता है
गॉव से काफी दूर इस मंदिर में गावं ख़त्म होते ही आदमी को अपनी सुविधा पे जाना होता है लोग यहाँ उपरी जगह पर खाने और रहने के इनजाम के साथ जाते हैं यहाँ पर मई और जून के महीने में जाना उचित माना जाता है इन महीनों में भी यहाँ पर बड़ी कडाके की ठंड पड़ती है इसलिए अपने साथ कम्बल और गर्म कपड़ों की व्यवस्था के साथ जाना पड़ता है
माता के मंदिर की लोग पूजा अर्चना करते हैं और नारियल और गुड यहाँ का प्रसाद होता है माता के मंदिर में रशूली नाम के वृक्ष के पते में प्रसाद लेना शुभ माना जाता है लेकिन इस पेड़ को लेकर एक मान्यता है कि इस पेड़ पर कभी हथियार नहीं चलाया जाता है इसलिए लोग इस पेड़ की पत्तियों को हाथ से तोड़कर माता का प्रसाद ग्रहण करते हैं
मान्यता यह भी है कि जब बहुत साल पहले गढ़वाल पर गोरखाओं का आक्रमण हुआ था तोमाँ ने अपने भक्तों को आवाज लगा कर सचेत किया था कहा ये भी जाता है कि गोरखा इस मंदिर से वापिस लौट गए थे उस समय में माता ने गोरखाओं को वापिस जाने के लिए कहा था
धारणाओं के मुताबित गुत्तू घनसाली के भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग यहाँ माँदीबा के दर्शन के लिए आते हैं जिनमे भूटिया जनजाति के लोग बकरियां चराने जब यहाँ आते हैं तो माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं क्योंकि जंगलों में रहकर वो माँ के नाम का सुमिरन करते हैं जिसकी वजह से रात रात जंगलों में वो सुरक्षित रहते हैं 

हमारा एकमात्र प्रयास है अपनी लोकसंस्कृति को विश्वभर में फैलाना। जय देवभूमि उत्तराखंड।
शेयर करे ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके ॥।
शेयर और कमेंट करना न भूले |
देवभूमि उत्तराखंड के रंग यूथ उत्तराखंड के संग🙏
टीम यूथ उत्तराखंड

Leave a Reply

Top
error: Content is protected !!