राजुला-मालूशाही story Story Historical by TeamYouthuttarakhand - October 9, 2018October 9, 2018 राजुला-मालूशाही उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र की एक अमर प्रेम कहानी है. प्रेम के प्रतिरोधों, विरोधों, विपरीतपरिस्थितियों, समाज एवं जातिगत बंधनों में उलझ कर सुलझ जाने वाली इस कहानी में प्रेम पथिकों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा……..जरूर पढ़ें!!!! उत्तराखंड में जब कत्यूर राज वंश के के राजा दुलाशाह का शाशन और राजधानी बैराठ में थी। पुत्र–कामना के लिए जब वे कुमाऊँ के बागनाथ मंदिर में मनौती मांगने गए तों उनकी भेंट भोट-प्रदेश के व्यापारी सुनपत शौका से हुई, वे भी पुत्र कामना के लिए ही वहाँ आये थे। दोनों ने निश्चय किया कि अगर दोनों में से किसी एक का लड़का और दुसरे की लड़की होगी तो उनका आपस में विवाह करा देंगे। कुछ समय बाद बैराठ नरेश को पुत्र (जिसका नाम “मालूशाही” रखा गया) और सुनपत शौक को पुत्री (जिसका नाम”राजुला” {also known as राजुली} रखागया) की प्राप्ति हुई । समय के साथ साथ दोनों जवान हो गए। एक ज्योतिष ने राजा को पुत्र का विवाह किसी नौरंगी कन्या से करने के लिए कहा। तो राजा को अपना पुराना वादा यादआ जाता है, उसने अपने दरबारियों को भोटप्रदेश भेजा ही था कि तभी राजा की मृत्यु हो गयी। अपशगुनी समझ राजुला कोसब कोसने लगे। लेकिन प्रेम की परिणीति पूर्व निर्धारित थी शायद। एक दिन राजुली मालूशाही के सपने में ही आ धमकी और राजुला के सपने में मालूशाही!! इस बीच कहा जाता है कि एक हूण राजा ने राजुला को शादी का प्रस्ताव दिया और मना करनेपर उसने धमकी तक दे दी। परेशान हो एक दिन राजुला खुद ही वैराटकी राह पर निकल पड़ी। घने जंगलों, वीरानपहाड़ों को पार करते राजुला मालूशाही के बैराठ में पहुँच गयी। लेकिन अपशगुनकी डर से मालूशाही की माँ राजुला से शादी न कर पाए इसलिए उसने मालूशाही कोनिंद्रा की जड़ी खिला दी। नींद की आगोशमें सोये हुए मालूशाही के समीप जब राजुला रुकी तो उसे प्रेमिका के पास होने का एहसास तक न हुआ। निराश राजुलाने मालूशाही को हीरे की अंगूठी पहनाई और रुंधे मन से अपने शौका देश लौट गयी। मालूशाही नींद से जागा तो हाथ में राजुला के नाम की अंगूठी देख व्याकुल हो उठा। सब तरफ से हारता हुआ देख मालूशाही ने अपना सारा राज पाठ छोड़ दिया, अपने राजसी वस्त्र नदी में बहा दिए और गुरुगोरखनाथ की शरण में चला गया। अपनी प्रेमिका से मिलन के लिए कई मिन्नतें करने के बाद गुरु गोरख नाथ ने उसे भोग्साडी विद्या सिखाई, हूणों के दुश्प्रभाव् से रोकने के लिए कई तन्त्र-मंत्र सिखाए। दीक्षा लेने के बाद मालूशाही ने सिर मुड़वाकर जोगी वेशधारण कर लिया। उधर तब तक हूण राजा विक्खपाल राजुला को रानी बनाकर ला चुका था। इतना कुछ हो जाने के बाद भी हार न मानकर मालूशाही उसी जोगी वेश में राजुला के महल के द्वार पर आकर भिक्षा मांगने लगा, तभी…. सौंदर्य की अप्रतिम छटा बिखेरे, राजशीठाट बाट में लक-दक् आभूषणो से सजी राजुला पात्र में भिक्षा ले पहुंची। भिक्षा देती राजुला को देखते ही मालूशाही सारी सुध-बुध भूल गया उसे वोसपनों की रात याद आ गयी जब उसने पहली बार राजुला को देखा था….राजुला के मन में संदेह उत्पन्न होता देख मालुशाही ने उसे अपने बारे में सब कुछ बता दिया। और कई दिनों तक चोरी छिपे मिलतेरहे, लेकिन राजा विखपाल को पता चल जाताहै और वो षड्यंत्र रच मालूशाही को मारडालता है….. मालूशाही की मौत का स्वप्न बैराठ में उसकी माँ को होता है तो माँ अपने भाई राजा मृतु सिंह और गुरु गोरखनाथ को हूण देश भेजती है है। गुरु गोरखनाथ भोग्साडी विद्या से मालूशाही को पुनर्जीवित कर देते हैं, मामा मृत सिंह की सेना ने हूणों को तहस-नहस कर देती है। अब मालूशाही पूरी शान-ओ-शौकतके साथ राजुला को अपने बैराठ प्रदेश लाता है….. राजुला वैराट प्रदेश की रानी बन गई- एक सामान्य परिवार में जन्मी राजुला के लिए राजशी ठाट-बाट के मालूशाही का त्याग, जिद और संघर्ष सच में आज के प्रेमियों के लिए मिशल के तौर पर अनुकरणीय है… वैलैंटाईन डे के इस दौर में राजुला-मालुशाहीकी अद्वितीय प्रेम की पराकाष्ठा हिमालय की ऊँची चोटियों में चमकते श्वेत हिम की तरह हमेशा एक अलग चमक बिखेरे हुए रहेगी….. Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share