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कुमाँऊ का इतिहास

कुमाँऊ शब्द की उत्पत्ति कुर्मांचल से हुई है जिसका मतलब है कुर्मावतार (भगवान विष्णु का कछुआ रूपी अवतार) की धरती। कुमाँऊ मध्य हिमालय में स्थित है, इसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में काली नदी, पश्चिम में गढ‌वाल और दक्षिण में मैदानी भाग। इस क्षेत्र में मुख्यतया ‘कत्यूरी’ और ‘चंद’ राजवंश के वंशजों द्धारा राज्य किया गया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का भी निर्माण किया जो आजकल सैलानियों (टूरिस्ट) के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। कुमाँऊ का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास ‘कत्यूरी’ राजवंश का इतिहास ही है, जिन्होंने 7 वीं से 11 वीं शताब्दी तक राज्य किया। इनका राज्य कुमाँऊ, गढ‌वाल और पश्चिम नेपाल तक फैला हुआ था।

1300 से 1400 ई। के बीच के प्राचीन काल में, उत्तराखंड के कत्युरी राज्य के विघटन के बाद, उत्तराखंड का पूर्वी क्षेत्र (कुमाऊं और नेपाल का सुदूर-पश्चिमी क्षेत्र जो तब उत्तराखंड का एक हिस्सा था) आठ अलग-अलग रियासतों यानी बैजनाथ से विभाजित था –कत्युरीद्वारहाटदोतीबारामंडलअसकोटसिरासोरासुई (काली कुमाऊँ)। बाद में, 1581 ई। में रुद्र चंद के हाथ से राइका हरि मल्ल (रुद्र चंद के मामा) की हार के बाद, ये सभी विघटित हिस्से राजा रुद्र चंद के अधीन आ गए और पूरा क्षेत्र कुमाऊँ के रूप में था।

picsrc :http://kumaon.gov.in/
अल्मोड‌ा शहर के नजदीक स्थित खुबसूरत जगह बैजनाथ इनकी राजधानी और कला का मुख्य केन्द्र था। इनके द्धारा भारी पत्थरों से निर्माण करवाये गये मंदिर वास्तुशिल्पीय कारीगरी की बेजोड‌ मिसाल थे। इन मंदिरों में से प्रमुख है ‘कटारमल का सूर्य मंदिर’ (अल्मोडा शहर के ठीक सामने, पूर्व के ओर की पहाड‌ी पर स्थित)। 900 साल पूराना ये मंदिर अस्त होते ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के वक्त बनवाया गया था। कुमाँऊ में ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के बाद पिथौरागढ‌ के ‘चंद’ राजवंश का प्रभाव रहा। जागेश्वर का प्रसिद्ध शिव मंदिर इन्ही के द्धारा बनवाया गया था, इसकी परिधि में छोटे बड‌े कुल मिलाकर 164 मंदिर हैं। ऐसा माना गया है कि ‘कोल’ शायद कुमाँऊ के मूल निवासी थे, द्रविडों से हारे जाने पर उनका कोई एक समुदाय बहुत पहले कुमाँऊ आकर बस गया।

आज भी कुमाँऊ के शिल्पकार उन्हीं ‘कोल’ समुदाय के वंशज माने जाते हैं। बाद में ‘खस’ समुदाय के काफी लोग मध्य एशिया से आकर यहाँ के बहुत हिस्सों में बस गये। कुमाँऊ की ज्यादातर जनसंख्या इन्हीं ‘खस’ समुदाय की वंशज मानी जाती है। ऐसी कहावत है कि बाद में ‘कोल’ समुदाय के लोगों ने ‘खस’ समुदाय के सामने आत्मसमर्फण कर इनकी संस्कृति और रिवाज अपनाना शुरू कर दिया होगा। ‘खस’ समुदाय के बाद कुमाँऊ में ‘वैदिक आर्य’ समुदाय का आगमन हुआ। स्थानीय राजवंशों के इतिहास की शुरूआत के साथ ही यहाँ के ज्यादातर निवासी भारत के तमाम अलग अलग हिस्सों से आये ‘सवर्ण या ऊंची जात’ से प्रभावित होने लगे। आज के कुमाँऊ में ब्राह्मण, राजपूत, शिल्पकार, शाह (कभी अलग वर्ण माना जाता था) सभी जाति या वर्ण के लोग इसका हिस्सा हैं।

संक्षेप में, कुमाँऊ को जानने के लिये हमेशा निम्न जातियों या समुदाय का उल्लेख किया जायेगा – शोक्य या शोक, बंराजिस, थारू, बोक्स, शिल्पकार, सवर्ण, गोरखा, मुस्लिम, यूरोपियन (औपनिवेशिक युग के समय), बंगाली, पंजाबी (विभाजन के बाद आये) और तिब्बती (सन् 1960 के बाद)।

6वीं शताब्दी (ए.डी) से पहले – क्यूनीनदास या कूनीनदास
6वीं शताब्दी (ए.डी) के दौरान – खस, नंद और मौर्य। ऐसी मान्यता है बिंदुसार के शासन के वक्त खस समुदाय द्धारा की गई बगावत अशोक द्धारा दबा दी गई। उस वक्त पुरूष प्रधान शासन माना जाता है।

633-643 ए.डी के दौरान यूवान च्वांग (ह्वेन-टीसेंग) के कुमाँऊ के कुछ हिस्सों का भ्रमण किया और उसने स्त्री राज्य का भी उल्लेख किया। ऐसा माना जाता है कि यह गोविशाण (आज का काशीपूर) क्षेत्र रहा होगा। कुमाँऊ के कुछ हिस्सों में उस वक्त ‘पौरवों’ ने भी शासन किया होगा।

6वी से 12वी शताब्दी (ए.डी) – इस दौरान कत्यूरी वंश ने सारे कुमाँऊ में शासन किया। 1191 और 1223 के दौरान दोती (पश्चिम नेपाल) के मल्ल राजवंश के अशोका मल्ल और क्रचल्ला देव ने कुमाँऊ में आक्रमण किया। कत्यूरी वंश छोटी छोटी रियासतों में सीमित होकर रह गया।

12वी शताब्दी (ए.डी) से – चंद वंश के शासन की शुरूआत। चंद राजवंश ने पाली, अस्कोट, बारामंडल, सुई, दोती, कत्यूर द्धवाराहाट, गंगोलीहाट, लाखनपुर रियासतों में अधिकार कर अपने राज्य में मिला ली।

1261 – 1275 – थोहर चंद

1344 – 1374 या 1360 – 1378 – अभय चंद। कुछ ताम्रपत्र मिले जो चंद वंश के अलग अलग शासकों से संबन्धित थे लेकिन शासकों के नाम का पता नही चल पाया।

1374 – 1419 (ए.डी) – गरूड़ ज्ञानचंद
1437 – 1450 (ए.डी) – भारती चंद
1565 – 1597 (ए.डी) – रूद्र चंद

1597 – 1621 (ए.डी) – लक्ष्मी चंद। चंद शासकों के दौरान नये शहरों की स्थापना और इनका विकास भी हुआ जैसे रूद्रपुर, बाजपुर, काशीपुर।

1779 – 1786 (ए.डी) – कुमाँऊ के परमार राजकुमार, प्रद्धयुमन शाह ने प्रद्धयुमन चंद के नाम से राज्य किया और अंततः गोरखाओं के साथ खुरबुरा (देहरादून) के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।

1788 – 1790 (ए.डी) – महेन्द्र सिंह चंद, ऐसा माना जाता है कि यह चंद वंश का अंतिम शासक था। जिसने राजबुंगा (चंपावत) से शासन किया लेकिन बाद में अल्मोड‌ा से किया।

1790 – 1815 (ए.डी) – कुमाँउ में गोरखाओं का राज्य रहा। गोरखाओं के निर्दयता और जुल्म से भरपूर शासन में चंद वंश के शासकों का पूरा ही नाश हो गया।

1814 – 1815 (ए.डी)नेपाल युद्ध। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गोरखाओं को पराजित कर कुमाऊँ में राज्य करना शुरू किया।

यदपि ब्रिटिश राज्य गोरखाओं (जिसको गोरख्योल कहा जाता था) से कम निर्दयता पूर्ण और बेहतर था लेकिन फिर भी ये विदेशी राज्य था। लेकिन फिर भी ब्रिटिश राज्य के दौरान ही कुमाँऊ में प्रगति की शुरूआत भी हुई। इसके बाद, कुमाँऊ में भी लोग विदेशी राज्य के खिलाफ उठ खड‌े हुए।

Almora Bazaar c1860 - UK Pedia

 

बाद में, इस क्षेत्र को अंग्रेजों ने 1815 में बंद कर दिया था, और तीन प्रशासकों, श्री ट्रेल, श्री जे। एच। बैटन और सर हेनरी रामसे द्वारा गैर-विनियमन प्रणाली पर सत्तर साल तक शासन किया गया था।

कुमाऊं के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध हुआ। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान कालू सिंह महाराज जैसे सदस्यों के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में कुमाऊनी लोग, विशेष रूप से चंपावत जिला बढ़ गया।

1891 में यह विभाजन तीन जिलों कुमाऊँ, गढ़वाल और तराई से बना था; लेकिन कुमाऊं और तराई के दो जिलों को बाद में उनके मुख्यालय, नैनीताल और अल्मोड़ा के नाम पर पुनर्वितरित और पुनर्नामित किया गया।

गांधीजी के आगमन ने कुमाऊं में अंग्रेजों के लिए मौत की आवाज सुनी। लोग अब ब्रिटिश राज की ज्यादतियों से वाकिफ हो गए और इसके प्रति उदासीन हो गए और स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई।

गांधीजी इन भागों में पूजनीय थे और उनके आह्वान पर राम सिंह धोनी की अगुवाई में सालम सलिया सत्याग्रह का संघर्ष शुरू किया गया था, जिसने कुमाऊं में ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दी थीं। पुलिस की बर्बरता के कारण कई लोग सौम्य सत्याग्रह में मारे गए। गांधीजी ने इसे कुमाऊं की बारडोली का नाम दिया, जो बारडोली सत्याग्रह के लिए एक भ्रम था

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना में कई कुमाऊंनी भी शामिल हुए।

कुमाउँनी अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं, उनका साहस पौराणिक था, उनका सम्मान अदम्य था। दिल्ली के शक्तिशाली मुस्लिम राजवंशों द्वारा कुमाऊंनी कभी भी पूरी तरह से अधीन नहीं थे। कुमाऊंनी अंग्रेजों द्वारा देखे गए थे, उनकी वीरता को अंग्रेजों द्वारा मान्यता दी गई थी और ब्रिटिश सेना में शामिल किया गया था। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि 3 जी गोरखा राइफल्स को केमोन बटालियन के रूप में जाना जाता था जब इसका गठन किया गया था और इसमें कुमाऊंनी और साथ ही गोरखाओं के साथ-साथ गोरखा भी शामिल थे। एक बार मार्शल रेस के रूप में स्वीकार किए जाने वाले कुमाऊँवासी खुद हैदराबाद रेजिमेंट में भर्ती होने वाले थे और मूल रूप से भारत की आजादी के बाद कुमाऊं रेजिमेंट बन गए। कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे सुशोभित रेजिमेंटों में से एक है। रेजिमेंट ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ अपनी उत्पत्ति का पता लगाती है और दो विश्व युद्धों सहित विभिन्न अभियानों में लड़ी है। स्वतंत्रता के बाद, रेजिमेंट ने भारत को शामिल करने वाले सभी प्रमुख संघर्षों में संघर्ष किया। उन्होंने भारत-चीनी युद्ध में असाधारण साहस दिखाया, रेजांग ला की लड़ाई वीरता के लिए लौकिक रही है।

 

 

 

कुमाऊँ क्षेत्र की बोलियाँ

हालाँकि कुमाऊँनी की बोलियाँ पड़ोसी गढ़वाली बोलियों के समान भिन्न नहीं हैं, पर कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाने वाली कई बोलियाँ हैं। कुमाउनी की बोलियों को विभाजित करने की एकल स्वीकृत विधि नहीं है। मोटे तौर पर, काली (या मध्य) कुमाउनी अल्मोड़ा और उत्तरी नैनीताल में बोली जाती है। उत्तर-पूर्वी कुमाऊँनी पिथौरागढ़ में बोली जाती है। दक्षिण-पूर्वी कुमापनी दक्षिण-पूर्वी नैनीताल में बोली जाती है। पश्चिमी कुमाउनी अल्मोड़ा और नैनीताल के पश्चिम में बोली जाती है।

  • काली कुमाऊँ, मध्य कुमाऊँनी
  • उत्तर-पूर्वी कुमाऊँनी
  • दक्षिण-पूर्वी कुमाऊँनी
  • पश्चिमी कुमाऊँनी
  • अस्कोट का अस्कोटी
  • रामनगर की भाभरी
  • चौगरखा की चौगरखियाली
  • दानपुर का दानपुरिया
  • गनौली की गंगोली (गंगोलीहाट)
  • मल्ल और जोला के जौहरी
  • अल्मोड़ा का खसपरिया
  • चंपावत की कुमैय्या
  • पाली-पछौ (रानीखेत, द्वाराहाट) के पचाई
  • फल्दकोट के फलादकोटिया
  • राउ-चौबांसी, (नैनीताल)
  • सिरकोट (दीदीहाट) की सिराली
  • सोर घाटी की घाटी (पिथौरागढ़)
  • नेपाल में बैतड़ी, दारचुला और बाजांग जिले के कुछ हिस्सों का बायदा
  • दोती की डोटियाली

Source:Manoj Bhatt

 

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