हाट कलिका मंदिर – गंगोलीहाट kumaon Spiritual by TeamYouthuttarakhand - August 30, 2018February 23, 2020 उत्तराखंड के गंगोलीहाट की सौन्दर्य से परिपूर्ण छटाओं के मध्य यहां से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर अत्यन्त ही प्राचीन मां भगवती महाकाली का अद्भुत मंदिर हाट कलिका को चाहे धार्मिक दृष्टि से देखें या पौराणिक दृष्टि से हर स्थिति में यह आगन्तुकों का मन मोहने में पूर्णतया सक्षम है। उत्तराखंड के लोगों की आस्था का केन्द्र महाकाली मंदिर अनेक रहस्यमयी कथाओं को अपने आप में समेटे हुये है। पवित्र पहाड़ों की गोद में बसा हरे भरे वृक्षों के मध्य स्थित यह मंदिर भक्तजनों के लिये जगत माता की ओर से अनुपम भेंट है। सुंदरता से भरपूर इस मंदिर के एक ओर हरा भरा देवदार का आच्छादित घना जंगल है।आदि शक्ति महाकाली का यह मंदिर ऐतिहासिक,पौराणिक मान्यताओं सहित अद्भुत चमत्कारिक किवदंतियों व गाथाओं को अपने आप में समेटे हुये है।सरयू एवं रामगंगा के मध्य गंगावली की सुनहरी घाटी में स्थित भगवती के इस आराध्य स्थल की बनावट त्रिभुजाकार बतायी जाती है। ‘माँ कालिका के इस मंदिर’ का पूरे कुमाऊँ क्षेत्र सहित भारतीय फौज की एक शाखा कुमाऊ रेजीमेंट की आस्था और विश्वास का केंद्र भी कहा जाता है,कुमाऊ रेजीमेंट का हाट कालिका से जुड़ाव द्वितीय विश्वयुद्ध (1939 से 1945) के दौरान हुआ। बताया जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बंगाल की खाड़ी में भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा। तब सैन्य अधिकारियों ने जहाज में सवार सैनिकों से अपने-अपने ईष्ट की आराधना करने को कहा। कुमाऊ के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया तो जहाज किनारे लग गया। इस वाकये के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने मां काली को अपनी आराध्य देवी की मान्यता दे दी। जब भी कुमाऊ रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए रवाना होते हैं तो कालिका माता की जै के नारों के साथ आगे बढ़ते हैं। इस मंदिर में महाआरती के बाद शक्ति के पास महाकाली का विस्तर लगाया जाता है और प्रात: काल विस्तर यह दर्शाता है कि मानों यहां साक्षात् कालिका विश्राम करके गयी हों क्योंकि विस्तर में सलवटें पड़ी रहती हैं। मां काली के प्रति उनके भक्तों के तमाम किस्से आज भी क्षेत्र में सुने जाते है भगवती महाकाली का यह दरबार असंख्य चमत्कार व किवदन्तियों से भरा पड़ा है। जय हो मां हाट कलिका🙏 Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share