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केदारनाथ ज्योतिलिंग

kedarnath

केदारनाथ ज्योतिलिंग
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भारत वर्ष में स्थित भगवान शिव के बारह जाग्रत स्वरूपो में से एक है।
भगवान कृष्ण की सहायता से पाण्डवों ने महाभारत के युद्ध में तो विजय प्राप्त कर ली। परंतु युद्ध समाप्ति के बाद उन्हें इस बात का पश्चाताप होने लगा था, कि उनके हाथें अपने ही भाई – बंधुओं की हत्या हो गई है। भातृहत्या, कुलनाश की पीड़ा से पाण्डव मानसिक रूप से ग्रस्त हो गये थे।
इस पीड़ा से मुक्ति के उपाय हेतु पाण्डव ने वेद व्यासजी के पास गए। वेद व्यास जी ने कहा हे पाण्डवों आप पर भगवान नारायण की कृपा तोे है, लेकिन जब तक महादेव के दर्शन और उनकी कृपा नहीं होगी। तब तक यह पाप समाप्त नहीं होगा।

पाण्डव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी विश्वनाथ गये। महादेव पाण्डवों से अप्रसन्न थे, क्याेंकि वे कुलघातियों होने के कारण भगवान शंकर पाण्डवों को प्रत्यक्ष रूप से दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए वे वहां से अंतर्धान हो गए।

पाण्डव निराश हो वेदव्यास जी द्वारा बताए केदारनाथ की ओर गये। पाण्डव इतने पीड़ित थे, कि वे भगवान शंकर के दर्शन के लिए व्याकुल होने लगे थे। अनेक कष्टों का सामना कर जब वे केदारनाथ पहुंचे तो महादेव ने पाण्डवों को देख गुप्तकाशी की ओर चले गए। जब पाण्डव ने भी दर्शन के लिए गुप्तकाशी गए तो भगवान शंकर एक भैंस का रूप धारण कर अन्य पशुओं के साथ विचरण करने लगे।

तभी एक आकाशवाणी हुई कि भगवान शंकर मंदाकिनी क्षेत्र में एक भैंस का रूप धारण कर भ्रमण कर रहें है। यह सुन भगवान शंकर की पहचान करने के लिए भीम वह पहुचते और एक गुफा के मुख के पास जाकर अपने पैर फैलाकर खड़ा हो गये। सभी अन्य पशु उनके पैरों के बीच से निकल गये। पंरतु भैस बने भगवान शंकर ने पैर के बीच से जाना स्वीकार नहीं किया । इस तरह पाण्डवों ने भगवान शंकर को पहचान लिया। जब भगवान शंकर का यह ज्ञात हुआ कि पांडवों को उनके इस रूप का पता चल गया है, तो वें भूमिगत अंतर्धान होने लगे। भगवान शंकर के अंतर्धान होते देख भगवान के दर्शन के लिए भीम ने भैस की त्रिकोणात्मक पीठ के भाग को पकड़ लिया। और भीम, द्रौपति सहित सभी पाण्डवों ने भगवान शंकर की स्तुति करने लगे। उनकी श्रद्धा भक्ति और करूणा भरी स्तुति से प्रसन्न हो भगवान शंकर ने पांडव को दर्शन दिये। भगवान शंकर के दर्शन से पाण्डवों के पाप समाप्त हो गये।

भगवान शंकर ने पाण्डवों से उनकी मनोकामना पूछी। पाण्डवों ने कहा हे प्रभु आपके दर्शन के सिवा कोई अन्य अभिलाषा नही है। पंरतु आपके इस रूप के दर्शन से हमारी पीड़ा का अंत हुआ है। इसलिए हे प्रभु आप जगत के कल्याण और भक्तों को पीड़ा से मुक्ति हेतु आप यही इस रूप में विराजमान हो जायें।

भगवान शंकर पाण्डवों से प्रसन्न हो भैंसे की पीठ रूप में वहीं स्थापित हो गए। उस ज्योतिर्लिंग की पाण्डवों ने विधि विधान पूर्वक पूजा की। तब से भगवान शंकर की पूजा यहाॅ भैस के पृष्ठ भाग के रूप में पूजा होती है। इनके साथ द्रौपती सहित पांचों पाण्डवों को भी पूजा जाता है।

भैस रूपी भगवान शंकर के अंगों की पांच स्थानों में पूजी की जाती है जिसमें केदारनाथ प्रमुख धाम है इसके अलावा मध्य महेश्वर में नाभि के रूप में, तुंगनाथ में भुजा व हृदय के रूप में, रूद्रनाथ में मुख के रूप में, और कल्पेश्वर में जटाओं के रूप में भगवान शिव स्थापित व पूजनीय है। इनके साथ-साथ बूढ़ा केदार के दर्शन भी किए जाते है।

जो भी मनुष्य भगवान केदारनाथ, बद्रीनाथ और नर तथा नारायण के इस स्वरूप का दर्शन करता है, वह मोक्ष की प्राप्ति करता है। कि जो भी यहाॅ केदारनाथ के दर्शन कर यहाॅ जल ग्रहण करता है, वह जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए केदारनाथ, बद्रीनाथ, नर-नारायण का दर्शन हर एक जीव को करना चाहिए।

शिव पुराण मे कहा गया है :-

केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।
तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।
तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।

अर्थात : जो भी मनुष्य केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में भक्ति-भावना रखता है और उनके दर्शन के लिए अपने स्थान से प्रस्थान करता है, किन्तु रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है, तो समझना चाहिए कि निश्चित ही उस मनुष्य की मुक्ति हो गई…. हर हर महादेव!!

ॐ Kedarnath Jyotirling ॐ

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देवभूमि उत्तराखंड के रंग यूथ उत्तराखंड के संग🙏
ॐजय केदारनाथ धामॐ👏👏

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