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ताड़केश्वर धाम, पौड़ी गढ़वाल.

जै ताड़केश्वर महादेव धाम 

ताड़केश्वर धाम, पौड़ी गढ़वाल. ताड़केश्वर महादेव ताड़ के विशाल वृक्षों के बीच में स्थित एक ऐसा प्राचीन तथा पौराणिक मंदिर है उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं.यह मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है

ताड़केश्वर महादेव ताड़ के विशाल वृक्षों के बीच में स्थित एक ऐसा प्राचीन तथा पौराणिक मंदिर है कि जहां आने मात्र से ही मन को एक अजीब प्रकार का सुकून और राहत मिलती है। यहां पर प्रकृति ने ऐसा वातावरण तथा दृश्यावलि रची हुई हैं कि ऐसा इस जगह के अतिरिक्त और कहीं देखने को नही मिलता है। यहां विशाल ताड़ के वृक्ष तथा हर मौसम में लबालब भरे जलकुण्ड देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।

कहते हैं कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां विश्राम किया था जब माता पार्वती ने देखा कि भगवान शिव को सूर्य की गर्मी लग रही है तो माता पार्वती ने स्वयं देवदार के वृक्षों का रूप धरा और भगवान शिव को छाया प्रदान की। भगवान शिव मंदिर के प्रांगण में आज भी वे सात ताड़ के पेड़ विराजमान हैं। रामायण में भी ताड़केश्वर का वर्णन एक पवित्र तीर्थ के रूप् में मिलता है। यहां बाबा ताड़केश्वर के पास लोग यहां अपनी मुरादें लेकर आते हैं। और भोलेनाथ अपने भक्तों को कभी निराश नही करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब किसी की मनोकामना पूरी होती है तो वे यहां मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। यहां मंदिर में चढ़ाई गई हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां बाबा की शरण में आने वाले मनीषियों का कल्याण होता है।

जब आप चखुलियाखांद से मंदिर की ओर चलते हैं तो आपको जरा भी आभास नही होता कि आप ताड़केश्वर महादेव पहुंचकर ऐसा भव्य शक्ति स्थल के दर्शन करेेंगे जो आपकी थकान तथा परेशानियों को पल में ही भुला देगा। ताड़केश्वर पहुंचकर पता चलता है कि सम्पूर्ण गढ़वाल में ऐसा भव्य शक्ति स्थल शायद ही कहीं होगा। यहां आकाश को चूमते विशाल देवदार के वृक्ष मानों वे आकाश से बातें कर रहे हों। सामने छोटी-छोटी पहाड़ियां और बांज तथा बुरांश के घने जंगल इसकी शोभा को और बढ़ा देते हैं।

यहां अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां तथा वनस्पतियां हैं जो कि ताड़केश्वर महादेव की सीमा से बाहर आने कहीं नही दिखाई देती हैं। पौराणिक मान्यता है कि ताड़केश्वर महादेव के शिव लिंग में जो दूध चढ़ाया जाता था वह यहां से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर झाल नामक स्थान पर एक जलकुण्डी से निकलता था। इस कुण्ड को लोग शिवलोक का प्रवेशद्वार भी मानते हैं। इस विषय में एक रोचक कथा भी प्रचलित है। कहते हैं कि पास के ही एक गांव की एक लड़की इस कुण्ड में अपनी छाया देख रही थी और अचानक वह इस कुण्ड में आ गिरी और शिवलोक पहुंच गई। वहां पहुंचकर कन्या ने शिव से विवाह कर लिया उसका नाम पार्वती था। एक बार जब पार्वती अपने मायके गई तो उसने शिव के बारे में किसी को नही बताया। और वहां से वापस आयी तो उसके मायके वालों ने उसके साथ कलेवा और राशन आदि जो बेटी को मायके से बिदा करते समय मिलता था उसे लेकर गांव के आदमियों को भेजा। पार्वती उनके साथ उस जलकुण्ड तक पहुंची देखते ही देखते अचानक पार्वती वहां से गायब हो गई। तब लोगों को शिव की महिमा का भान हुआ तब से यह कुण्ड पूजनीय हो गया।

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