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जय माँ धारी देवी

Dhari Devi

जय माँ धारी देवी….

धारी देवी मंदिर , देवी काली माता को समर्पित है…..माँ धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है….धारी देवी का पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है…..यह श्रीनगर, उत्तराखंड से लगभग 15 किमी, रुद्रप्रयाग से 20 किमी और दिल्ली से 360 किमी दूर है। मां धारी देवी प्राचीन काल से ही उत्तराखंड की रक्षा करती आ रही हैं। कहते हैं उत्तराखंड के जितने भी तीर्थ स्थल हैं उनकी रक्षा मां धारी देवी ही करती हैं।

माँ धारीजी शक्तिपीठ- चमत्कारी शक्तिपीठ जहा माँ धारी दिनमे तीन बार बदलती है आपना रुप और देवभुमी उत्तराखंड के चारो धामों का रक्षण करनेवाली मा धारीजी का संबंध है  धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग आलक्कन नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर है। तब से यहां देवी धारी के रूप में मूर्ति पूजा की जाती है। माना जाता है कि धारी देवी दिन के दौरान अपना रूप बदलती है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, कभी एक लड़की, एक औरत, और फिर एक बूढ़ी औरत का रूप बदलती है। मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है। कालीमठ भारत में 108 शक्तिस्थलों में से एक है। धार्मिक परंपरा के अनुसार कालीमठ एक ऐसी जगह है जहां देवी काली ने रक्तबीज राक्षस को मार डाला था और उसके बाद देवी पृथ्वी के नीचे चली गई थी।मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष मां के दर्शन के लिए आते करते हैं। धारी देवी मंदिर में मनाए जाने वाले कई त्योहार है उनमें से, दुर्गा पूजा व नवरात्री में विशेष पूजा मंदिर में आयोजित की जाती है, ये त्योहार यहां का महत्वपूर्ण त्योहार हैं। मंदिर सुंदर फूलों और लाईटों से सजाया जाता है.१०८ शक्तिपीठों मे साक्षात मा सती है जो आपने पार्वती रुप मे उनकी रक्षा करती है”
जय मा धारीजी…🌺🌺🌺🌺

पौराणिक 

सिद्धपीठ मां धारी देवी को पौराणिक कथानकों के अनुसार द्वापर युग से ही माना जाता है। ईष्ट देवी और कुल देवी के रूप में श्रद्धालु मां धारी देवी की पूजा करते हैं….धर्मशास्त्रों के अनुसार यहीं पर मां काली शांत हुई थी और तभी से यहां पर कल्याणी स्वरूप में मां की पूजा की जाती है….माना जाता है कि माँ धारी देवी दिन के दौरान अपना रूप बदलती है…स्थानीय लोगों के मुताबिक, कभी एक लड़की, एक औरत, और फिर एक बूढ़ी औरत का रूप बदलती है…….आदि शंकराचार्य ने भी यहां पर पूजा अर्चना की थी….पैदल मार्ग से जब चारधाम यात्रा हुआ करती थी तब श्रद्धालु अपनी यात्रा के सकुशल संपन्न होने को लेकर मां धारी देवी की विशेष पूजा अर्चना के बाद ही आगे बढ़ते थे…..
सिद्धपीठ धारी देवी में जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं मां धारी देवी उसे पूर्ण करती है….मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु पुन: यहां आकर घंटी और श्रीफल श्रद्धा से चढ़ाते हैं.. पूर्व में यहां मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पशुबलि प्रथा थी… उस समय गोपालदास गिरनारी, स्व. पंडित कुशलानंद और पंडित लक्ष्मी प्रसाद पांडे सहित अन्य पुजारियों की पहल पर 1986 में ही सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पशुबलि प्रथा बंद हुई। जिसके बाद यहां पर प्रसाद स्वरूप श्रीफल चढ़ाया जाता है…..

उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है ये देवी। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी भी माना जाता है।

🚩 माँ धारी देवी🚩
🚩जय माँ भगवती🚩
🚩जय देवभूमि उत्तराखंड🚩🚩ॐ🚩

 

 

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