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धरती पर स्वर्गलोक पांडव-खोली

द्वाराहाट ( अल्मोडा़ ) से 25 km आगे है ये विस्मरणीय स्थल ।। जहा़ 4 km की चडा़ई है और अंत मे आता है एक विहंगम दृश्य जो कठिन रास्ते की थकान को पल मे गायब कर देता है ।।।महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़े समुद्रतल से 8800 फुट की ऊंचाई पर स्थित स्वर्गपुरी पांडवखोली में धार्मिक और अध्यात्मिक पर्यटन की की तपोभूमि रही है 60 किमी की दूरी पर स्थित स्वर्गपुरी पांडवखोली के लिए द्वाराहाट से कुकूछीना जाना पड़ता है। कुकूछीना से साढ़े तीन किमी की खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद पांडवखोली जैसे दिव्य और एकांत स्थल के दर्शन होते हैं। पांडवखोली से हिमालय, सनराइज और सनसेट के विहंगम दृश्य दिखाई देते हैं। इसी के चलते यहां देसी-विदेशी पर्यटक खिंचे चले आते हैं और कई दिन तक यहां ध्यान लगाते हैं

कुमाऊं की प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं स्थापत्य कला की केंद्र रही पौराणिक द्वारका से लगभग 22 किमी दूर है पांडवखोली दूनागिरि पर्वत श्रृंखला में शामिल है। इसे त्रेता में यहां संजीवनी बूटी के अंश गिरे तो संजीवनी प्रदेश नाम पड़ा। गर्ग मुनी ने यहां तप किया। पांडवखोली के सामने भरतकोट की ऊंची चोटी से निकलने वाली नदी का नाम गगास नदी के रूप में मिला।

महाभारत काल में जब पांडवों को अज्ञातवास हुआ था, तब पांचों पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ इसी स्थल पर रहे थे। यहां पर बुग्यालनुमा स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर भीम आराम करते थे, इसे भीम की गुदड़ी कहा जाता है। हजारों साल बाद ब्रह्मलीन महंत बलवंत गिरि महाराज की नजर इस स्थल पर पड़ी तो उन्होंने इसके विकास के लिए प्रयास किए। भव्य मंदिर का निर्माण कराया। अब पथ भ्रमण संघ ने लोगों के सहयोग से यहां आश्रम बना दिया है, ध्यान मठ केंद्र बन गया है। टावरनुमा मठ में ध्यान लगाया जाता है। दिसंबर में बाबा की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारा होता है। यहां पांडवों की पत्थर से निर्मित मूर्तियां स्थापित की गई हैं।

अभिनेता रजनीकांत का द्वाराहाट योगदा आश्रम गहरा नाता रहा है। उनकी महावतार बाबा में अगाध श्रद्धा है। आध्यात्मिक शांति के लिए वह हर साल यहां आकर कुछ समय बिताते हैं और ध्यान करते हैं

 

पांडवखोली के सामने भरतकोट की ऊंची चोटी से निकलने वाली नदी का नाम गगास नदी के रूप में मिला।
महाभारत काल में जब पांडवों को अज्ञातवास हुआ था, तब पांचों पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ इसी स्थल पर रहे थे।
यहां पर बुग्यालनुमा स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर भीम आराम करते थे, इसे भीम की गुदड़ी कहा जाता है।

हजारों साल बाद ब्रह्मलीन महंत बलवंत गिरि महाराज की नजर इस स्थल पर पड़ी तो उन्होंने इसके विकास के लिए प्रयास किए। भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
अब पथ भ्रमण संघ ने लोगों के सहयोग से यहां आश्रम बना दिया है, ध्यान मठ केंद्र बन गया है।
टावरनुमा मठ में ध्यान लगाया जाता है। दिसंबर में बाबा की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारा होता है।
यहां पांडवों की पत्थर से निर्मित मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण सर्दियों में हर साल यह चोटी बर्फ से लदी रहती है।…

पांडवखोली से हिमालय की सुंदर श्रंखलाओं के दर्शन किये जा सकते हैं।
सूर्योदय व सूर्यास्त का खूबसूरत दृश्य बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। अनेक पर्यटन विकास की संभावनाओं को भी खूबसूरत पांडवखोली समेटे हुवे है।महावतार बाबा गुफा, द्रोपदी विहार, भीम की गुदड़ी, ध्यान केन्द्र , सुंदर मंदिर परिसर मन को शांति प्रदान करने वाली एकांत रमणीक स्थल के गुणों को समेटे है स्वर्गपुरी पांडवखोली । हिमालय श्रंखलाओं की खूबखूरत दर्शन स्थली है इसके चारों ओर स्थित हैं भरतकोट, मनसादेवी, सुखादेवी, व आदिशक्ति मां दूनागिरी के मंदिर समूह। इन्में श्रद्धालुओं की अटूट अगाध आस्था है।
पांडवखोली के पूर्व में भरतकोट, पश्चिम में सुखा देवी मंदिर जो कुकुछीना व दूनागिरी मंदिर के बीच में स्थित है। उत्तर में मनसा देवी व दक्षिण में आदिशक्ति मां दूनागिरी का मंदिर स्थित है।

पांडवखोली क्षेत्र अपार वन संपदा से घिरा क्षेत्र है जिसमें बहूमूल्य जड़ी बूटियों का खजाना है और अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां, पौधे, वन संपदा भी पांडवखोली के घनघोर वनों में है।
महाभारत काल की घटनाओं से जुड़ी पांडवखोली क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है किंतु यहां से प्रकृति का सुंदर विहंगम दृश्य भी श्रद्धालुओं, पर्यटको को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
देवभूमि में अनेक धार्मिक स्थल अपनी आध्यात्मिक महत्ता को बतलाते हैं वही प्राकृतिक सौंदर्य की धनी हमारी देवभूमि उत्तराखण्ड में पर्यटन विकास की भी अपार संभावनाऐं हैं।
आज देवभूमि उत्तराखण्ड के इन खूबसूरत धार्मिक, स्थलों को विकसित करने की भी आवश्यकता है जिससे की महाभारत काल की घटनाऐं यादों को आध्यात्मिक, धार्मिक, दृष्टि से संजोया जा सके। देवभूमि की आस्था सदैव ही महान रही है और देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रही है।
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