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तू ऐ जा औ पहाड़

लोकगायक बीके सामंत ने उत्तराखंड पलायन पर शानदार गीत तू ऐ जा औ पहाड़ के जरिए पलायन कर रहे लोगों को पहाड़ न छोडऩे और पलायन कर चुके उत्तराखंड प्रवासी को वापस अपने देवभूमि उत्तराखंड वापस आने का संदेश दिया है ।पलायन से खाली होते गांवों की पीड़ा और पलायन करने के बाद आ रही गांव की याद को मार्मिक तरीके से इस गीत में प्रस्तुत किया गया है इस गीत में बचपन के दिनों से लेकर पहाड़ों में मनाये जाने वाले त्योहार का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। उन्होंने पहाड़ में बंद पड़े घरों, कफुवे (चिडिय़ा) की आवाज, घुघुतियां का त्योहार, सर्दी के दिनों में बादल का आने का सुंदर वर्णन किया है। उन्होंने अपने गीत में पहाड़ के दर्द को प्रकृति साथ जोडक़र अपने शब्दों में पिरोया है। यह गीत आपके आंखों में आंसू ला देगा। पलायन कर रहे लोगों को पहाड़ न छोडऩे की सलाह देते हुए इस गीत ने लोगों के दिलों में अपनी जगह पक्की कर ली। बीके सामंत इससे पहले थल की बजारा सांग बना चुके है जो हर उत्तराखंडी वासी को बहुत पसंद आया था जिसके गाने सबके दिलो दिमाग में अभी तक छाये हुए है थल की बाजार को अभी तक दो करोड़ से ऊपर देख चुके है इस गीत को दिल्ली, देहरादून और बेतालघाट में फिल्माया गया है। इस बार उनके साथ रेड एफ रेडियों के आरजे काव्य भी नजर आ रहे है।

तु ऐ जा औ पहाड़ .ऊ आंख्युं को काजल , ऊ ह्यून को बादल , बुलूमै त्वे तु ऐ जा , ऊ धूप को आँचल ,
सुण यो गंग गाड़ , करमै डाड़ा डाड़ , तु ऐ जा औ पहाड़ , बंद यो घर द्वार , लागि र्यांन उजाड़ ,
तु ऐ जा औ पहाड़ …..

हमारा एकमात्र प्रयास है अपनी लोकसंस्कृति को विश्वभर में फैलाना। जय देवभूमि उत्तराखंड।
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देवभूमि उत्तराखंड के रंग यूथ उत्तराखंड के संग🙏

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