Maun Fair Of Uttarakhand Fair-Festivalis by TeamYouthuttarakhand - December 12, 2017October 11, 2019 जौनसार बावर का लोकप्रिय और परम्परागत त्योहार मौण मेला मछली मारने का यह उत्सव विशेष रूप से जौनसार और रवांई जौनसार के क्षेत्रों में मनाया जाता है। इसको मनाये जाने की तिथि प्राय: जून जून महीने में 27 या 28 तारीख को पडती है। मौण का अर्थ है तिमूर के छिलकों को कूटकर तैयार किया गया वह पदार्थ, जिसके मादक प्रभाव से मछलियां बेहोश हो जाती हैं। जौनसार (जौनपुर) में इसका आयोजन मसूरी – यमुनोत्री मार्ग पर अलगाड़ नदी के पुल के समीप बंदरकोट के पास पटालूताल में किया जाता है। जौनसार (जौनपुर) में इसका आयोजन मसूरी – यमुनोत्री मार्ग पर अलगाड़ नदी के पुल के समीप बंदरकोट के पास पटालूताल में किया जाता है। इसके लिए कम से कम एक माह पूर्व से तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं। मौण तैयार करने के लिए प्रत्येक खत (पट्टी) की बारी निश्चित होती है। इस क्षेत्र के दस – बारह गाँव मिलकर तिमूर का चूर्ण तैयार करते हैं। इसमें भाग लेने वाले लोग अपने हाथों में मछली मारने वाला जाल, कुंडियाला, फटियाला, और मछोनी लेकर सामूहिक रूप से ढोल बजाते हुए बाजूबंद, जंगु आदि गीतों को गाते हुए तथा पीठ पर तिमूर के चूर्ण का बैग लेकर आते हैं। इस चूर्ण को दो पहाडों के बीच बहती हुई नदी के तंग मुहाने पर डाल दिया जाता है, चूर्ण के मद से मछलियां बेहोश होकर पानी के ऊपर तैरने लगती हैं। इसके साथ ही उपस्थित लोग नदी में उतरकर मछलियों को पकड़ना प्रारम्भ कर देते हैं। मछलियां पकडने का यह क्रम दस से बारह किमी० तक चलता है। अन्त में एक दूसरे के द्वारा पकड़ी गयी मछलियों का निरीक्षण किया जाता है तथा जिसके पास कम मछलियां होती हैं उसे अधिक मछली प्राप्त करने वाला और मछलियां देता है। घर पहुचने पर सबसे बड़ी मछली को देवताओं को चढ़ाया जाता है। रात्रि में इष्ट मित्रों व पडोसियों के साथ मिलकर मछली और भात बनाकर खाया जाता है। मौण मेला इस उत्सव के बारे में यह भी कहा जाता है कि मौण, टिमरू नाम के पेड़ के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश करने में प्रयोग किया जाता है। टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है। मौण के लिए दो महीने पहले से ही ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। मेले से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है। 27 साल बाद इस बार बणगांव ख़त द्वारा खतनू नदी में मौण मेला उत्तराखंड वैसे तो देव भूमि के रूप में जाना जाता है,यहाँ पर हर 14 कोस में मामूली भाषायी अंतर आ जाता है,विभिन्न संस्कृतियो वाले इस प्रदेश में भिन्न-भिन्न प्रकार के रीती- रिवाज,त्यौहार एव लोक संस्कृति हैं, उन्ही में से एक है जौनसार बावर पौण मेला नियत समय पर उद्घोषणा के साथ नदी में लगा जमावड़ा,मछलियों को पकड़ने के लिए टूट पड़ता है , जिसने जितना अधिक मछली पकड़ी,उतना ही वो सौभाग्यशाली समझा जाता है बता दें कि जौनसार-बावर में दो तरह के मौण मेले का आयोजन किया जाता है, जातरु मौण और मच्छ मौण। खतनू नदी में 4 जून 2017 को मच्छ मौण में पौराणिक परंपरा के अनुसार नदी में मछलियों का शिकार होता हैखतनू नदी में टिमरु पाउडर ( ब्लीचिंग) डालने के साथ ही मौण मेला शुरू हो जाता है ,27 साल बाद हुए मच्छ मौण में क्षेत्र की आठ खतों द्वार, बिशलाड, मोहना, बोंदूर, अठगांव, कोरु, बहलाड़ के ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया, बणगांव खत ने पूरे क्षेत्र के लोगों को मौण मेले में आने का निमंत्रण भेजा था, लोक संस्कृति के प्रतीक मौण मेले में शामिल लोगों में मछलियां पकड़ने का विशेष उत्साह होता है। Maun Fair Of Uttarakhand Maun Fair Of Uttarakhand Maun Fair Of Uttarakhand Maun Fair Of Uttarakhand Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share