राइफलमैन जसवंत सिंह रावत हीरों ऑफ़ नेफा चीन युद्ध की कहानी story Story Historical by TeamYouthuttarakhand - December 19, 2018January 3, 2019 यह सच्ची गाथा है एक वीर सैनिक की। भारत मां के इस सच्चे सपूत की जिंदगी तो देश की रक्षा के लिए समर्पित थी ही, यह सैनिक शहीद होने के बाद भी आज तक सीमा की सुरक्षा में लगा है। यह जांबाज सैनिक था जसवंत सिंह रावत। इसकी बहादुरी के चलते सेना ने जसवंत के शहीद होने के 40 साल बाद रिटायरमेंट देने की घोषणा की। इस बीच जसवंत को पदोन्नति भी दी जाती रही। देश के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है जसंवत सिहं ने चीन युद्ध के समय ऐसी वीरता का परिचय दिया था जो अविश्वसनीय है। जसवंत सिंह रावत 4 गढ़वाल राइफल्स, उत्तराखंड के एक भारतीय राइफलमेन सिपाही थे जिन्होंने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश में नूरानंग की लड़ाई में मरणोपरांत महा वीर चक्र जीता था। उनका जन्म 1 9 अगस्त, 1 9 41 को श्री गुमान सिंह रावत के घर में गांव बैरुन, पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। 1962 चीन युद्ध के समय जसवंत सिहं अपने कुमाऊँ रेजिमेण्ट के साथ लद्दाख मे मोर्चा संभाले थे। उस समय जबरदस्त भीषण युद्ध मे उनके सभी साथी एक-एक करने शहीद होते चले गये। अन्त मे केवल जसवंत सिहं जिन्दा बचे थे, उन्होने वहा की दो स्थानिय युवतियो की सहायता से अकेले मोर्चा संभाला और 72 घण्टे तक युद्ध किया और 300 चीनी सैनिको मार गिराया। उसके बाद दुश्मनो की गोलियो का शिकार बन गये और वीरगति प्राप्त की। 1962 के युद्ध मे 676 चीनी सैनिक मारे गये थे जिनमे से 300 अकेले वीर जसवंत सिहं ने मार गिराये। जसवंत सिहं की वीरता से प्रभावित होकर चीनी सरकार ने उनकी एक ताम्बे से बनी मुर्ति भारत सरकार को भेट की। जसवंत सिहं की याद मे एक मंदिर बनाया गया तथा इस मुर्ति को वही प्रतिष्ठित कर दिया गया। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को 21 वर्ष की आयु में मरणोपरांत महावीर_ क्र से सम्मानित किया गया। 17 नवंबर 1962- राइफलमैन जसवंत सिंह रावत,4 गढ़वाल राइफल्स 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया थाl अरुणाचल प्रदेश के ऊँचे पहाड़ों पर घमासान युद्ध चल रहा था l भारतीय सिपाही जी जान लगा कर लड़ रहे थी, पर चीन हर दृष्टि से भारत पर हावी था l उनके पास सैनिक संख्या बहुत बड़ी थी, बहुत बड़ी मात्रा में हथियार और वो भी आधुनिक हथियार थे, जिनकी मारक क्षमता अधिक थी l हालाँकि भारत के पास सैन्य बल और हथियार दोनों की ही कमी थी, पर एक बात की कमी नहीं थी और वो था मनोबल l चीन की सेना से लोहा लेने के लिए ४ गढ़वाल राइफल्स को अरुणाचल प्रदेश भेजा गया , इसी ४ गढ़वाल राइफल्स में थे राइफल मैन जसवंत सिंह रावत. 19 अगस्त 1941 को पौड़ी गढ़वाल में जन्म जसवंत सिंह 19 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती हुए, चीन से युद्ध के महज डेढ़ साल पहले , पर युद्ध के मैदान में उनकी सूझ बूझ दुश्मनों पर भरी पड़ी . जसवंत सिंह रावत ने जिस युद्ध में चीन के सैनिकों से लोहा लिया उसे नूरानांग_युद्ध के नाम से जाना जाता है l नवम्बर के महीने में भारतीय सेना तवांग से पीछे हट गयी और वहाँ ४ गढ़वाल राइफल्स को सेला इलाके की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया, जिस से सेना की नयी टुकड़ी आकर आगे बढ़ सके . गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिकों ने तीन बार चीन की सुसज्जित सेना को खदेड़ दिया था, अब चौथी बार दुश्मन आगे बढ़ रहा था l भारतीय सेना के पास सैनिकों की संख्या बहुत कम थी , साथ ही गोला बारूद भी ख़त्म हो रहा था l आधुनिक हथियारों से लैस चीनी सैनिकों से लड़ना मुश्किल हो रहा था, इसलिए सैनिकों को वापस आने का आदेश दे दिया गया था, 17 नवम्बर को चीनी सेना ने फिर नूरानांग पर हमला बोला l M M G यानि मीडियम मशीन गन से लगातार गोलियों की बौछार हो रही थी, जो बहुत घातक थी l परन्तु २१ वर्षीय इस सिपाही ने पीछे हटने से माना कर दिया l अद्भुत साहस और शूरता के परिचय देते हुए, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं, इन तीनों ने मिलकर तय किया कि आग उगलती इस मशीन गन को शांत करना है l सादे कैनवास के जूते और एक हैंड ग्रनेड से लैस,लगभग चौदह हज़ार फ़ीट ऊँची इस युद्ध भूमि में जसवंत सिंह रावत अपने साथियों के साथ बर्फ में रेंगते हुए दुश्मन के बंकर की ओर गए l मशीन गन से करीब 12 मीटर की दूरी से जसवंत सिंह ने एक ग्रेनेड बंकर में फेंका, जिस से कई चीनी सैनिकों की मौत हो गयी l उन्होंने वो मशीन गन उठा ली और रेंगते हुए वापस जाने लगे, अपनी खंदक के पास पहुँच ही गए थे, पर तभी उनके सर पर गोली लगी और वे शहीद हो गए, त्रिलोक_सिंह_नेगी भी शहीद हो गए, बुरी तरह से ज़ख़्मी गोपाल सिंह गुसाईं, किसी तरह से दुश्मन की मशीन गन अपने खंदक तक ले गए l 15 मिनट के इस अदम्य साहस के नतीजा ये हुआ की भारतीय सेना की नयी टुकड़ी को वहाँ तक पहुँचने के समय मिल गया और हमरो सेना की मशीन गन फिर चलने लगीं l इस घटना के युद्ध में दूरगामी परिणाम हुए l चीनी सेना को भरी नुकसान हुआ, करीब 300 चीनी सैनिक मरे गए, अरुणाचल प्रदेश चीन के कब्ज़े में जाने से बच गया और शीघ्र ही युद्ध विराम घोषित कर दिया गया .जसवंत सिंह ने तीन दिनों तक दुश्मनों के मुकाबला किया । जसवंत सिंह रावत जिनकी शूर वीरता के किस्से न केवल सेना के आधिकारिक रिकार्ड्स में बल्कि लोक कथा के रूप में भी आज तक प्रसिद्द हैं l उनका साहस और पराक्रम इतना प्रभावी था की उनका मंदिर और संग्रहालय आज भी अरुणाचल प्रदेश में है . मरणोपरांत महावीर चक्र जसवंत_सिंह_रावत को इस साहस, पराक्रम और बलिदान के लिए, मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया , साथ ही वीर #त्रिलोक_सिंह_नेगी को मरणोपरांत वीर चक्र और गोपाल सिंह गुसाईं को वीर चक्र से सम्मानित किया गया l जसवंत सिंह रावत की 4 गढ़वाल राइफल्स को ”बैटल ऑनर नूरानांग’‘ से सम्मानित किया गया, 1962के युद्ध में एक मात्र सेना की यूनिट को ये सम्मान मिला . राइफल मन जसवंत सिंह रावत को 1962 के इस युद्ध के नायक माना जाता है और जहाँ वे शहीद हुए उस स्थान को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है । बाबा जसवंत सिंह जसवंत सिंह रावत को लोग बाबा जसवंत सिंह कहते हैं, आज भी सेना के जवान जब भी वहाँ से गुज़रते हैं, वे बाबा जसवंत सिंह से मिलने ज़रूर जाते हैं l वहाँ के निवासियों के लिए जसवंत सिंह भगवान के सामान है, जिसने अरुणाचल प्रदेश को चीन से बचा लिया ।जसवंत रावत को स्थानीय लोगों द्वारा एक पवित्र बाबा के रूप में माना जाता है, जो उस इलाके पर निगरानी रखते है और उस क्षेत्र की सुरक्षा करते है। उस जगह पर एक स्मारक भी बनाया गया है जहां उन्होंने लड़ाई लड़ी और अब उस जगह को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है। इस मार्ग से जो कोई भी गुजरता है, जनरल से लेकर जवान सभी यहां उन्हें सम्मान देते हैं और माथा टेकते हैं। ऐसा माना जाता है जैसे वे अभी भी जीवित है, रोजाना उनके बूट पोलिश किये जाते हैं, कपडे धुले और स्त्री किये जाते हैं और बिस्तर बनाया जाता है|। अक्सर उन्हें जुटे कीचड़ में सने पाए जाते हैं, मानो वे रात भर चले हों। सुबह उनका बिस्तर देख भी ऐसा लगता है जैसे कोई सोया हो| यह भी जाता है कि बर्फीले तूफ़ान में फसे गाड़ियों के काफिले ने जसवंत को तीखे मोड़ों पर वाहनों को निर्देशित करते देखा है। उनकी मृत्यु के बाद भी वे समय पर पदोन्नति प्राप्त करते हैं। जसवंत सिंह के ये बलिदान, देशप्रेम और निडरता आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती रहेगी . भारत माता के वीर सपुत शहीद जसवंत सिहं को कोटि-कोटि नमन्। Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share