Kandali Festivals Of Uttarakhand Fair-Festivalis by TeamYouthuttarakhand - December 12, 2017April 13, 2021 कंडाली महोत्सव पिथौरागढ़ जिले के चौदास घाटी में हर बारह वर्ष के उपरांत अगस्त – सितंबर में कंडाली या किर्जी उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है। इस दिन प्रत्येक परिवार प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम जौ और फाफर के आटे से निर्मित “ढूंगो” देवता की अर्चना अपने आंगन के कोने में सम्पन्न करता है। व्यक्तिगत पूजा के बाद गांव में सामूहिक भोजन होता है जिसके उपरांत तैयारी हेतू सूचना के लिए ढोल नगाड़े बजने लगते हैं, सभी ग्रामीण एकत्रित होकर देवस्थान की ओर प्रस्थान करते हैं। हिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर और हाथ में दराती लेकर पुरुषों के साथ जुलूस बनाकर कंडाली वाले क्षेत्रों की ओर चल पड़ते हैं। इस अवसर पर विवाहित बेटियों और दामादों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। जुलूस का नेतृत्व ढो़ल वादक करता है, उसके बाद महिला एवं पुरुष दल हर्ष ध्वनि के साथ कंडाली वाले क्षेत्रों में पहुचते है वहां पहुंचने के बाद जोर जोर से ढोल जोर जोर से बजने लगता है, महिलाएं अपनी दराती और तलवार आदि से कंडाली पर टूट पड़ती हैं और देखते ही देखते कंडाली को तहस नहस कर डालती हैं। इसके बाद अक्षत उछालकर देवी देवताओं का स्मरण कर पुनः ढो़ल दमौ की धुन पर नृत्य करते हुए गांव में वापस आते हैं, और कंडाली सभा का आयोजन किया जाता है। इसके बाद फलों, फूलों और मिष्ठान आदि से लोकदेवताओं का पूजन किया जाता है और प्रसाद पाकर सब लोग अपने घरों को प्रस्थान करते हैं। कंडाली महोत्सव इस उत्सव के बारे में यह भी कहा जाता है कि 1841 में लद्दाख से जोरावर सिंह के आक्रमण होने पर जोरावर की सेना को तब पीछे धकेल दिया था जब गाँव के पुरुष व्यापार के लिये बाहर गये थे। उन महिलाओं ने उन कंग्डाली की झाडि़यों का समूल नाश कर दिया, जिसके पीछे शत्रु छिपे थे, जो पीछे हट गये। इससे यहां की महिला सेना बहुत परेशान थी। आक्रमणकारियों की काफी संख्या तो उन्होंने कम कर दी लेकिन कुछ कंडाली में छुप जाते थे, जब यह बात वीरांगनाओं को पता चला तो उन्होंने शत्रु के आश्रय कंडाली की समस्त झाडियों को नष्ट कर दिया, तब से उनकी स्मृति में प्रत्येक बारहवें बर्ष में इस उत्सव को मनाया जाता है। कंडाली के पौधों को नष्ट करने के बाद युवा और प्रौढ़ महिलाओं द्वारा एक नृत्य किया जाता है जिसे “कंडाली नृत्य” कहा जाता है। कभी कभी लोकगीत और नृत्य सम्पूर्ण रात्रि चलता रहता है। यह उत्सव चौदास के गांवों में अलग अलग दिनों में मनाया जाता है ताकि एक गांव के लोग दूसरे गांव के उत्सव में सम्मिलित हो सकें। हर 12 वर्ष में कंग्डाली त्यौहार मनाते हैं चीन और नेपाल के सीमांत पिथौरागढ़ जिले पर बसा चौदांस क्षेत्र अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों और अपनी विविध व बहुरंगी सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग के मध्य पड़ने वाला यह भाग मुख्यतः सोसा, सिर्धांग, पांगू, हिमखोला, जयकोट, रुंग, लुमखेड़ा, कुरीला, मड़बारसो, छलमाछिलासो, पुलनाभक्ता, सामरी, कुरीला, बंग्पा, जयकोट, शानखोला, गिप्ती, तानकुल आदि गाँवों से बना है। विषम भौगोलिक परिस्थिति के बावजूद रं संस्कृति के लोग अपनी लोक संस्कृति और सामाजिक सद्भाव के लिये विख्यात हैं। ये लोग हर 12 वर्ष में कंग्डाली त्यौहार मनाते हैं। इस उत्सव के बारे में यह भी कहा जाता है कि कि इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली कंडाली (सिसौण) नामक पौधे के पुष्प को खाने से एक विधवा औरत के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो गई थी, कहीं गलती से अन्य बच्चे इसके विषैले फूल को ना खा लें इसलिए महिलाओं ने इसे डंडों से पीट पीटकर खत्म करने का बीड़ा उठाया था लेकिन इसका बीज खत्म नहीं हो सका। अतः हर बारह वर्ष में इसके पुष्प आने पर महिलाओं द्वारा सामूहिक प्रयास से इसे नष्ट किया जा जाता है, कंडाली की इस प्रजाति को जौतिया या जैनिया कहा जाता है जो हल्का पीला और बैंगनी होता है। लोगों के अनुसार यह संकट और विनाश का सूचक होता है अतः इसे नष्ट कर देना चाहिए। Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share