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उत्तराखंडी के प्रसिद्ध पारम्परिक लोक वाद्ययंत्र वाद्ययंत्र

उत्तराखंड राज्य अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरे संसार में प्रसिद्ध है । यहाँ के वाद्य यंत्र हम सभी को थिरकने के लिए मजबूर करते हैं । तो आइए हम भी जाने यहाँ के वाद्य यंत्रों के बारे में ।उत्तराखंड राज्य अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरे संसार में प्रसिद्ध है । यहाँ के वाद्य यंत्र हम सभी को थिरकने के लिए मजबूर करते हैं । तो आइए हम भी जाने यहाँ के वाद्य यंत्रों के बारे में ।


उत्तराखंड की पर्वतीय क्षेत्र की संस्कृति में विभिन्न अवसरों पर ताल और सुर में ढोल और दमाऊं का वादन किया जाता है। ढोल दमों, मशका बाजु, बीन बशुली, रणसिंघा, नागर, इत्यादि उत्तराखंड की मंगलवाद्य व लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। उत्तराखंड में जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर संस्कार इनके बिना अपूर्ण है। कुल १६ संस्कारो में जैसे ( नामकरण, अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म, विवाह, यज्ञोपवीत) कार्यों में इन वाद्ययंत्रो का विशेष उपयोग किया जाता है। उत्तराखंड की पर्वतीय क्षेत्र की संस्कृति में विभिन्न अवसरों पर ताल और सुर में ढोल और दमाऊं का वादन किया जाता है।ढोल की थाप पर मनुष्य के तो पैर थिरकते ही हैं किन्तु स्वर्ग से सोते हुए देवी , देवता और अप्सराये भी धरा पर थिरकने को मजबूर हो जाती हैं. एक थाप पर अनेको लोग देव रूप धारण कर लेते हैं. और एक गलत थाप पर न जाने कौन सी आपदा आ पड़े कोई नहीं जानता.
ढोल बजाने की कई विधियां हैं कई ताल हैं । ढोल सागर में पृथ्वी संरचना के नौ खंड सात द्वीप और नौ मंडल का वर्णन व्याप्त है. ढोल ताम्र जडित, चर्म पूड़ से मुडाया जाता है.

उत्तराखण्ड के लोक वाद्य ढोल, दमाऊ, रणसिंग, तुरही और मशकबीन भी शिरकत करते हैं,ढोल-दमाऊं उत्तराखंडी लोक वाद्ययंत्र हैं। इसकी ताल सभी लोगों को झूमने और नाचने की लिए मजबूर कर देती है।

मस्क बीन

उत्तराखंड के प्रमुख लोक वाध्य यंत्रों में से मस्कबीन भी शामिल है जिसे लोक भाषा में ‘बीन बाजा’ कहा जाता है। इसके बजते ही रोम रोम में एक अलग सा ही एहसास होने लग जाता है विशेष कर शादी विवाह के अवसर पर इसकी मधुर ध्वनि कानों में पड़ते ही रोमांच से भर जाता है। शादी विवाह में इन लोक वाध्य यंत्रों का बजाना ही अपने आप में एक रोमांच है।

उत्तराखंड के अनेकों पौराणिक परंपराओं का एक विशेष अंग है वादययंत्र और इन वाद्ययंत्रो को बजाने वालो का भी हमारे उत्तराखंडी संस्कृति में अहम योगदान रहा है।ढोल दमों, मशका बाजु, बीन बशुली, रणसिंघा, नागर, इत्यादि उत्तराखंड की मंगलवाद्य व लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। उत्तराखंड में जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर संस्कार इनके बिना अपूर्ण है। कुल १६ संस्कारो में जैसे ( नामकरण, अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म, विवाह, यज्ञोपवीत) कार्यों में इन वाद्ययंत्रो का विशेष उपयोग किया जाता है। उसी प्रकार इन वाद्ययंत्रो को बजाने वालों को स्थानीय लोगों द्वारा भिन्न भिन्न नाम दिये गए है जैसे (औजी, ढोली, दास, बाज़गी ) इत्यादि। इन वाद्यको द्वारा जब ये सभी उत्तराखंडी वाद्ययंत्रो बजाए जाते है तब मनोरंजन के साथ ही साथ उस ताल में कई विशेष वार्तालाप के माध्यम से विशेष संदेश को भी दर्शाया जाता है व अलग- अलग ताल की गूँज से यह पता लगाया जा सकता है की कौन सा संस्कार या अवसर चल रहा है। उन तालों में से कुछ इस प्रकार है व यह ताल एक विशेष संदेश को दर्शाती है।
१: धयाल ताल, मंदिरो में बजाई जाती है।
२: नौबत ताल, श्रवण के महीनो में प्रातः काल बजाई जाती है।
३: बढ़ेल ताल, शादी, मंगल स्नान में बजाई जाती है।
४: रेहमानी ताल, बारात प्रस्थान के समय बजाई जाती है।
५: सबदा ताल, रुकी हुई बारात को संकेत करती है।
६: गड़छल ताल, छोटी नदी व नाले पार करते समय बजाई जाती है।
७: पांडव ताल, पांडव नृत्य के लिए बजाई जाती है।
ये वादक (औजी ) जो हमारे उत्तराखंड की संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग है परंतु आज ये अंग हमारे संस्कृति से व अपने पेशे से धीरे धीरे ख़ुद को अलग करते जा रहे है और इस का कारण है समाज के वे सभी लोग जो इनके साथ जातपात का व्यवहार करते है। आज भी उत्तराखंड में औजीयो को छोटी जाती के लोग माना जाता है।उन्हें उनके कार्य के उचित पैसे नहीं दिए जाते जिससे उनका व उनके परिवार का भरण पोषण नहीं हो पता। आज के आधुनिक युग में हर व्यक्ति बेहतर जीवनशैली जिन चाहता है। जिसके कारण वर्तमान में जन्मे औजी परिवार की पीढ़िया अपने पूर्वजों के इस काम से मुँह फेरते जा रहे है व अपनी इस कार्य का परित्याग करके शहरो की और रोज़गार ढूँढना पसंद करते है

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जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण जी ने अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी, इलीनीयो यूनिवर्सिटी, शिकागो, नॉर्थ केरिलोना और ओकला होमा यूनिवर्सिटी के करीब डेढ़ हजार छात्र-छात्राओं को ढोल, दमौ, डौंर, हुड़का थाल, जागर की खूबियों से रूबरू कराया और उन्हें प्रशिक्षण दिया था |अमेरिका जाने का उनका मूल मकसद जागर और ढोल, जागर के शोधार्थियों के सामने व्याख्यान देना था। पिछले साल २०17 हरिद्वार में 1500 ढोलवादक एक साथ ढोल बजाकर रिकॉर्ड बनाया था|
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टीम यूथ उत्तराखंड

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