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Kartik Swami Temple

kartik swami temple

उत्तराखंड का कार्तिक स्वामी मंदिर

समुद्रतल से करीब 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कार्तिक स्वामी  मंदिर है

कार्तिक स्वामी का मंदिर भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी को समर्पित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, इस मंदिर तक पहुंचने के लिये कनकचौरी तक सड़क मार्ग है और उससे आगे तीन कि०मी० की पैदल यात्रा करनी होती है। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है, मंदिर के प्रांगण से चौखम्बा, त्रिशूल आदि पर्वत श्रॄंखलाओं के सुगम दर्शन होते हैं।रुद्रप्रयाग और चमोली जनपद के बाडव, पोगठा, स्वारी, तड़ाग, पिल्लू, थाल, सोना-मंगरा, बनेड़, चौंडी-मज्याड़ी सहित 360 गांवों के ईष्टदेव हैं। क्रौंच पर्वत पर स्थित इस प्राचीन मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय आज भी यहां निर्वांण रूप में तपस्यारत हैं।
कार्तिक स्वामी मंदिर की महत्ता
रुद्रप्रयाग। 1940 से प्रतिवर्ष जून माह में मंदिर में महायज्ञ होता है। बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां निसंतान दंपति दीपदान करते हैं। यहां पर रातभर खड़े दीये लेकर दंपति संतान प्राप्ति की कामना करतेे हैं, जो फलीभूत होती है। कार्तिक पूर्णिमा और जेठ माह में आधिपत्य गांवों की ओर से मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है।

यह है मान्यता :
रुद्रप्रयाग। किवदंती है कि भगवान कार्तिकेय व गणेश ने अपने माता-पिता भगवान शिव व पार्वती के सम्मुख उनका विवाह करने की बात कही। माता-पिता ने कहा कि जो पूरे विश्व की परिक्रमा कर पहले उनके सम्मुख पहुंचेगा, उसका विवाह पहले होगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर विश्व परिक्रमा को निकल पड़े।

जबकि गणेश गंगा स्नान कर माता-पिता की परिक्रमा करने लगे। गणेश को परिक्रमा करते देख शिव-पार्वती ने पूछा कि वे विश्व की जगह उनकी परिक्रमा क्यों कर रहे हैं तो गणेश ने उत्तर दिया कि माता-पिता में ही पूरा संसार समाहित है। यह बात सुनकर शिव-पार्वती ने खुश होकर गणेश का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री रिद्धि व सिद्धि से कर दिया।

इधर, विश्व भ्रमण कर लौटते समय कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने पूरा वृतांत सुनाया तो, कार्तिकेय नाराज हो गए और उन्होंने अपने शरीर का मांस अपनी माता पार्वती को सौंप दिया और अपने शरीर की हड्डियां पिता शिव को सौप कर निर्वाण रूप में तपस्या के लिए क्रोंच पर्वत पर गए, तभी से यहां ये कार्तिक स्वामी का पूजन किया जाता है.

 

भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है।

देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथउत्तराखंड के संग
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