उत्तरायणी कौतिक का गौरवमय इतिहास Cultural Events Culture Fair-Festivalis by - January 17, 2018January 18, 2018 उतरैणी कौतिक’ इस शब्द में उतरैणी का अर्थ है कि सूर्य देेव का उत्तर दिशा की ओर बढ़ना है और कौतिक का अर्थ है मेंला, हर वर्ष सूर्य देव छः माह उत्तरायण में रहते है और छः माह दक्षरायण में, मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते है इस घटना को कुमाऊनी में उत्तरायणी कहा जाता है उत्तर और पूरब दिशा को धर्म शास्त्रों के अनुसार शुभ माना गया है, अनेकानेक शुभ कार्यों की सुरुआत भी इसी दिन से शुरू होती है। उत्तराणी के मेले अवधि में खास तौर से बागेश्वर में तट पर दूर-दूर से श्रद्धालु, भक्तजन आकर मुडंन, यग्योपवीत (जनेऊ धारण करना), पूजा अर्चना, करने आते हैं उतरैणी का भी गौरवमय इतिहास है । प्राप्त प्रमाणों के आधार पर माना जाता है कि चंद वंशीय राजाओं के शासनकाल में ही माघ मेले की नींव पड़ी थी,चंद राजाओं ने ऐतिहासिक बागनाथ मंदिर में पुजारी भी नियुक्त किय थेे । हमारे बडे बताते हैं कि महीनों पूर्व से कौतिक में चलने का क्रम शुरु होता । धीरे-धीरे सब जगह के लोग मिलके हुड़के और अन्य बाध्य यंत्रों से सबका मन मोह लेते थे । फलस्वरुप लोकगीतों और नृत्य का आयोजन होने लगा, हुड़के की थाप पर कुमाऊनी नृत्य, हाथ में हाथ डाल लोग मिलने की खुशी से नृत्य-गीतों के बोल का क्रम मेले का अनिवार्य अंग बन गया । आज भी हमारे आमा बूबू याद करते है उस समय मेले की रातें किस तरह अपने आपमे अनोखी लुभावनी हुआ करती थी । प्रकाश की व्यवस्था अलाव जलाकर होती थी। काँपती सर्द रातों में अलाव जलते ही ढोड़े, चांचरी, भगनौले, छपेली जैसे नृत्यों का अलाव के चारों ओर स्वयं ही विस्तार होता जाता था। नुमाइश खेत में रांग-बांग होता जिसमें जगह जगह के लोग अपने यहाँ के गीत गाते । सबके अपने-अपने नियत स्थान थे । परम्परागत गायकी में प्रश्नोत्तर करने वाले बैरिये भी न जाने कहाँ-कहाँ से इकट्ठे हो जाते । काली कुमाऊँ, मुक्तेश्वर, रीठआगाड़, सोमेश्वर और कव्यूर के बैरिये झुटपूटा शुरु होने का ही जैसे इन्तजार करते । इनकी कहफिलें भी बस सूरज की किरणें ही उखाड़ पातीं । कौतिक आये लोगों की रात कब कट जाती मालूम ही नहीं पड़ता था । धीरे-धीरे धार्मिक और आर्थिक रुप से समृद्ध यह मेला व्यापारिक गतिविधियों का भी प्रमुख केन्द्र बन गया । भारत और नेपाल के व्यापारिक सम्बन्धों के कारण दोनों ही ओर के व्यापारी इसका इन्तजार तरते । तिब्बती व्यापारी यहाँ ऊनी माल, चँवर, नमक व जानवरों की खालें लेकर आते । भोटिया-जौहारी लोग गलीचे, दन, चुटके, ऊनी कम्बल, जड़ी बूटियाँ लेकर आते । नेपाल के व्यापारी लाते शिलाजीत, कस्तूरी, शेर व बाघ की खालें । स्थानीय व्यापार भी अपने चरमोत्कर्ष पर था । दानपुर की चटाइयाँ, नाकुरी के डाल-सूपे, खरदी के ताँबे के बर्तन, काली कुमाऊँ के लोहे के भदेले, गढ़वाल और लोहाघाट के जूते आदि सामानों का तब यह प्रमुख बाजार था । गुड़ की भेली से लेकर मिश्री और चूड़ी चरेऊ से लेकर टिकूली बिन्दी तक की खरीद फरोख्त होती । माघ मेला तब डेढ़ माह चलता । दानपुर के सन्तरों, केलों व बागेश्वर के गन्नों का भी बाजार लगता और इनके साथ ही साल भर के खेती के औजारों का भी मोल भाव होता । बीस बाईस वर्ष पहले तक करनाल, ब्यावर, लुधियाना और अमृतसर के व्यापारी यहाँ ऊनी माल खरीदने आते थे । उत्तरायणी कौतिक बागेश्वर-2018 बागनाथ देवता की गोद में सरयू-गोमती नदी के संगम तट पर बसा बागेश्वर इन दिनों सांस्कृतिक रंग में रंगा हुआ है। तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है। 14 जनवरी से उत्तरायणी कौतिक(मेले) का शुभारंभ हो गया है। मान्यता है कि इस दिन सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते है बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960 मीटर की ऊचांई पर स्थित है।उत्तरायणी मेला सम्पूर्ण कुमायुं का प्रसिद्ध मेला है। मेला अवधि में संगम तट पर दूर-दूर से श्रद्धालु, भक्तजन आकर मुडंन, जनेंऊ सरंकार, स्नान पूजा अर्चना करते है तथा पुण्य लाभ कमाते है विशेषकर मकर संक्रान्ति के दिन प्रातःकाल से ही हजारों की संख्या में स्त्री पुरूष बच्चे बूढें महिलाऐ संगम में डुबकी लगाते हैं। मान्यता है कि वर्ष में सूर्य छः माह दक्षिणायन में व छः माह उत्तरायण में रहता है। मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है इस समय संगम में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मेला अवधि मे बाहर से आये हुये कलाकारों द्वारा विशेष नाटकों का आयोजन होता है स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान स्थानीय संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता हैं। दिन में शैक्षिणिक संस्थानों के बालक बालिकाओं द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। बागेश्वर में उत्तरायणी मेला 14 जनवरी शुरू सीएम ने त्रिवेंद्र ने किया मेले का उद्घाटन हुआ जो 20 जनवरी तक चलेगा मेला। उत्तरायणी कौथिग के दौरान सांस्कृतिक कुमाउनी झोड़ा प्रदर्शन करते छात्र-छात्रायें. खोली दे माता खोल भवानी धार मै केवाढा युथ उत्तराखंड टीम मेंबर सुमित रौतेला कल बागेश्वर में उत्तरायणी कौतिक में उपस्थित थे कौतिक की कुछ झलकियां आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहे है विडियो पसंद आया तो शेयर करना न भूले हमारा एकमात्र प्रयास है अपनी लोकसंस्कृति को विश्वभर में फैलाना। जय देवभूमि उत्तराखंड। शेयर और कमेंट करना न भूले | शेयर करें ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके ॥। देवभूमि उत्तराखंड के रंग युथ उत्तराखंड के साथ🙏 Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share