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ऐपण ~ उत्तराखंड की विश्व विख्यात परंपरागत कला

ऐपण पारम्परिक हस्तकला

उत्तराखंड की संस्कृति में रची बसी एक प्रचीन कला है उत्तराखंड की संस्कृति में विभिन्न प्रकार की लोक कलाएं मौजूद है। उन्ही में से एक प्रमुख कला पारम्परिक हस्तकला ऐपण भी है उत्तराखण्ड की पारम्परिक हस्तकला ऐपण का दीवाली पर्व में विशेष महत्व है। ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है. इस उत्तराखण्ड लोककला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक चित्रित किया जाता है. शादी, जनेऊ, नामकरण और अन्य त्यौहारों के अवसर पर हर घर को इसी लोककला से सजाया जाता है दीपावली में उत्तराखंड खासकर कुमॉऊ के ज्यादातर घरो में ऐपण कला से घर की चोखट में डिजाइन किये जाते है ! दीपवली में ऐपण में लक्ष्मी के चरण चिन्ह जिन्हें “पौ” कहा जाता है, ख़ास तौर पर बनाये जाते हैं।

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pic source : Project Aipan

ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है। समय के साथ ऐपण कला में काफी बदलाव आया हो, लेकिन इसका परम्परगत कला का जादू आज भी बरकरार है. ये पहाड़ की एक ऐसी कला है जो पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती जा रही है

उत्तराखंड की स्थानीय चित्रकला की शैली को ऐपण के रूप में जाना जाता है। मुख्यतया ऐपण उत्तराखंड में शुभ अवसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली है । ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण किया जाता है। फुर्तीला उंगलियों और हथेलियों का प्रयोग करके अतीत की घटनाओं, शैलियों, अपने भाव विचारों और सौंदर्य मूल्यों पर विचार कर इन्हें संरक्षित किया जाता है।ऐपण (Aipan) के मुख्य डिजायन -चौखाने , चौपड़ , चाँद , सूरज , स्वस्तिक , गणेश ,फूल-पत्ती, बसंत्धारे,पो, तथा इस्तेमाल के बर्तन का रूपांकन आदि शामिल हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं।

ऐपण कुमाँऊ की पारम्परिक लोक कला

pic source : Project Aipan & Aipan Art facebook




ऐपण कुमाँऊ की पारम्परिक लोक कला है । किसी भी उत्सव या शुभ कार्य में गेरू और चावल के आटे का इस्तेमाल कर घर की महिला द्वारा घर की देहरी पर ऐपण बनाये जाते हैं । घर के प्रति प्रेम , लगाव और सम्मान का प्रतीक होता है ‘ऐपण’
उत्तराखंड की संस्कृति में रची बसी एक प्रचीन कला है ऐपण! उत्तराखंड संस्कृति में ऐसा माना जाता है ऐपण के बिना कोई भी मांगलिक कायकर्म अधूरा माना जाता है

पहाड़ की स्थानीय चित्रकला की शैली ऐपण को शुभावसरों पर लाल और सफ़ेद रंग से बनायीं जाने वाली रंगोली (अल्पना) के रूप में जाना जाता है। इसके लिए घर, ऑंगन , सीढ़ियों तथा दरवाजों व खिड़कियों को गेरू (लाल रंग या लाल मिट्टी) से लीपा जाता है। भीगे चावल को पीस कर उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। यह उत्तराखंड कुमाँऊनी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इस चित्रकला का पहाड़ के स्थानीय बाजारों से अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पर्दार्पण हो चुका है।

गेरू और विस्वार से बनाने की थी परंपरा गाँव घरो में तो आज भी हाथ से ऐपण तैयार कियें जातें है। ऐपण बनाने के लिए गेरू तथा चावल के विस्वार (चावल को भीगा के पीस के बनाया जाता है ) का प्रयोग किया जाता है। समारोहों और त्योहारों के दौरान महिलाएं आमतौर पर ऐपण को फर्श पर, दीवारों को सजाकर, प्रवेश द्वार, रसोई की दीवारों, पूजा कक्ष और विशेष रूप से देवी देवताओं मंदिर के फर्श पर कुछ कर्मकाण्डो के आकड़ो के साथ सजाती है। लक्ष्मी चौकी, विवाह चौकी , दिवाली की चौकी त्यौहारो और शुभ विवाह के अवसरों पर त्यार किये जाते है

पहाड़ से दूर रह रहे युवा अपने इस प्रिय कला से जुड़ रहे है और ऐपण बनाने का हुनर सिख रहे है
ऐपण का स्वरूप भी समय के साथ परिवर्तित हो रहा है.कमैट (सफेद मिट्टी) और लाल मिट्टी के स्थान पर अब सफेद व लाल पैन्ट का प्रयोग होने लगा है. यही नहीं त्यौहारों के मौसम में अब बाजारों में रेडिमेड ऐपण भी मिलने लगे हैं. जो समय तो बचाते ही हैं

यूथ उत्तराखंड का अनुरोध है आधुनिकता के दौर समय के साथं अपनी कला को न भूले ! इस कला को संजोक कर रखने की जरुरत है ! । ऐपण का रूप आज बाजार में रेडीमेड ऐपण ने ले लिया है। रेडीमेट ऐपण के साथ आप आधुनिक और पारपरिक हस्तकला ऐपण को भी अपनाये !

उत्तराखंड की इस कला को खासकर महिलाओ और नव युवको ने इस कला को संजोक की रखा है ।ऐपण कलात्मक उत्पादों का बाजार दिन भर दिन बढ़ता जा रहा है इस कला को बढ़ावा देने की लिए जगह आजकल प्रतियोगिता होती है ! ऐपण कला जिसका उपयोग कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य में पूरी धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है. यह ऐसी लोककला है जिसे लोग सदियों से अपना रहे हैं. उत्तराखंड की ऐपण कला सही मायने में खुशहाली का प्रतीक है

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