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झाकर सेम देवता मंदिर

झाॅकरसैम देवता :
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झाँकरसैम मंदिर महादेव शिव के अवतार सैम देवता को समर्पित यह प्रसिद्ध देवालय अल्मोड़ा जनपद के जागेश्वर से चार किलोमीटर दक्षिण में दारुका वन में देवदार के वनों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। इतिहासकार डॉ. मदन चंद्र भट्ट के अनुसार सैम देवता की माँ कालीनारा राजा निकन्दर की पुत्री थी। एक बार उसकी कुम्भ के मेले में गंगा स्नान की इच्छा हुई। उसने अपने माता पिता और चाचा से कुम्भ स्नान की अनुमति मांगी। किसी ने उसे अनुमति प्रदान नहीं की।

जब उसने अपने भाई की पत्नी से अनुमति मांगी तो उसने कहा नान्ज्यू ( ननद जी) इतने लंबे पैदल मार्ग पर अनेक पुरुषों के साथ आप कई दिन रात के सफर पर कैसे जा सकती हैं कहीं मार्ग में कोई पापाचरण हो गया तो किस मुंह से आप वापस आओगी? राजकुमारी बोली जो वृद्ध जन होंगे उन्हें वह बूबू शब्द से, जो बड़े भाई होंगे उन्हें दाज्यू और छोटों को भाई कहकर वह सम्बोधित करेगी। इस प्रकार छोटी बहू से अनुमति पाकर वह तीर्थ यात्रा को निकल पड़ी।

दैव कृपा से हरिद्वार पहुंचकर वह गर्भवती हो गई। यह जानकर वह सोचने लगी कि किस मुंह से अब वह घर लौटेगी? वह जंगल में भटकने लगी। तभी वह शिव अवतार बाबा गोरखनाथ के आश्रम में जा पहुंची। बाबा समाधि में ध्यानावस्था में थे। युवती कालीनारा ने बाबा की धूनी जलाई। फूलों को सींचकर फुलवारी निर्मित की। बाबा जब ढाई माह पश्चात ध्यानावस्था से बाहर आये तो आस पास का माहौल देखकर अत्यंत हर्षित हुए और कालीनारा की दुःख भरी गाथा सुनकर बोले यही प्रभु ईच्छा है। तुम अब यहीं रहोगी।

समय आने पर कालिनारा के गर्भ से हरु देवता का जन्म हुआ। एक बार कालिनारा बाबा के संरक्षण में हरु को छोड़कर गंगा स्नान के लिए गई। बाबा ध्यानावस्था में चले गए। हरु अपनी माता के पीछे गंगा तट को चला गया। वहां लटुवा मशान ने कालिनारा पर आक्रमण कर दिया। जब हरु ने यह देखा तो उसने लटुआ की गर्दन पर चढ़कर उसकी हत्या कर दी। उधर बाबा समाधि से उठे तो हरु को सामने न पाकर व्यग्र हो गए। उन्होंने सोचा कि शायद किसी हिंसक पशु ने हरु को खा लिया है। इसीलिए उन्होंने कुशा घास के तिनके में प्राण डालकर योग शक्ति से उसे हरु का रूप दे दिया। कालान्तर में यही दूसरा बालक सैम देवता कहलाया।

पुरातन काल में जागेश्वर में नाग वंशियों का शासन था। नाग परम्परा में यज्ञ को झांकर कहा जाता था। बाद में शिवांश सैम देवता से जुड़ने के कारण यह झांकरसैम कहा जाने लगा। यहां चैत्र बैसाख में देवयात्राएं ढोल नगाड़ों के साथ निकाली जाती हैं जिनमें देवडांगर धामी में सैम देवता का अवतरण होता है। सैम देवता को बिना मिर्च की दाल और चावल का भोग लगाया जाता है। सैम की मौसी का पुत्र गोलू हंसुलिगढ़ का राजा था। सैम गोलू और हरु ने मिलकर कूर्मांचल में न्याय पूर्वक शासन किया। इनका काल कूर्मांचल का स्वर्ण युग माना जाता है।

माना जाता है कि झाँकरसेम की पूजा करने से भक्तों को सुख शांति प्राप्त होती है और मृत्यु के बाद शिव लोक में स्थान मिलता है।

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