शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर Spiritual by TeamYouthuttarakhand - May 28, 2020May 28, 2020 देवभूमि उत्तराखंड के #रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री_कालीमठ मंदिर स्थित है | यह मंदिर समुन्द्रतल से 1463 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है एवम् इस मंदिर को भारत के प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से एक माना जाता है । कालीमठ मंदिर हिंदू “देवी काली” को समर्पित है । कालीमठ मंदिर तन्त्र व साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामख्या व ज्वालामुखी के सामान अत्यंत ही उच्च कोटि का है । स्कन्दपुराण के अंतर्गत केदारनाथ के 62 अध्धाय में माँ काली के इस मंदिर का वर्णन है | कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर स्थित दिव्य चट्टान को ‘काली शिला’ के रूप में जाना जाता है , जहां देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं और कालीशीला के बारे में यह विश्वास है कि माँ दुर्गा ने शुम्भ , निशुम्भ और रक्तबीज दानव का वध करने के लिए कालीशीला में 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुयी थी | कालीशीला में देवी देवता के 64 यन्त्र है , माँ दुर्गा को इन्ही 64 यंत्रो से शक्ति मिली थी | कहते है कि इस स्थान पर 64 योगनिया विचरण करती रहती है | मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी । तब मां प्रकट हुई और असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया। कालीमठ मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है , मंदिर के अन्दर भक्त कुंडी की पूजा करते है , यह कुंड रजतपट श्री यन्त्र से ढखा रहता है । केवल पूरे वर्ष में शारदे नवरात्री में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और दिव्य देवी को बाहर ले जाया जाता है और पूजा केवल मध्यरात्रि में की जाती है, जब केवल मुख्य पुजारी मौजूद है | कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक है, जिसमें शक्ति की शक्ति है | यह केवल ऐसी जगह है जहां देवी माता काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और माँ सरस्वती के साथ स्थित है । कालीमठ में महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है | इन मंदिरों का निर्माण उसी विधान से संपन्न है जैसा की दुर्गासप्तशती के वैकृति रहस्य में बताया है अर्थात बीच में महालक्ष्मी, दक्षिण भाग में महाकाली और वाम भाग में महासरस्वती की पूजा होनी चाहिए । स्थानीय निवासीओं के अनुसार, यह भी किवदंती है कि माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म इसी शिलाखंड में लिया था। वहीं, कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था । उसका रक्त जमीन पर न पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया । रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है । इस शिला पर माता ने उसका सिर रखा था । रक्तबीज शीला वर्तमान समय में आज भी मंदिर के निकट नदी के किनारे स्थित है | साभार सशक्त उत्तराखंड Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share