दूनागिरी मंदिर Spiritual by TeamYouthuttarakhand - July 12, 2018July 12, 2018 दूनागिरी मंदिर 🌹 कुमाऊं की वैष्णो देवी मंदिर के रूप में प्रख्यात दूनागिरि शक्तिपीठ उत्तराखंड में बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है | उन्ही शक्तिपीठ में से एक है द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ |वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में “दूनागिरि”दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 km आगे माँ दूनागिरी माता का मंदिर अपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है | मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा शक्ति लगी थी | तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था | हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहा पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया | कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति स्थापित की।इतना ही नहीं मंदिर में शिव व पार्वती की मूर्तियाँ विराजमान है। हिमालय गजिटेरियन के लेख ईटी एडकिंशन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेखों में मिलता है । इस पर्वत पर पांडव के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इसका नाम द्रोणागिरि भी है | पुराणों उपनिषदो व इतिहासवादियों ने दूनागिरी की पहचान माया-महेश्वरी या प्रकृति-पुरुष व दुर्गा कालिका के रुप में की है | इसी पर्वत पर स्थित भगवान गणेश के नाम से एक चोटी का नाम गणेशाधार पूर्व से प्रचलित है। बताते है कि लंका युद्ध के दौरान लक्ष्मण का द्रोणांचल पर्वत से उपचार तथा मायावी राक्षस कालनेमी व हनुमान युद्ध का प्रसंग इसके त्रेतायुगी इतिहास को बताता है | देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडव ने युद्ध में विजय तथा द्रोपती ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रुप में पूजा की । स्कंदपुराण के मानसखंड द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरी को महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के अनूप विशेषणों के अतिरिक्त वह्च्मिति के रुप में प्रदर्शित किया गया है | इस भव्य मंदिर के दर्शन करने के लिए करीब 500 सीढ़ियां चढ़नी होती है | यह मंदिर बास , देवदार , अकेसिया ,और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ो के बीच में स्थित है । इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी, बूटियां भी मिलती हैं | मंदिर से हिमालय पर्वतो के भव्य दर्शन होते है | द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है |मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर- दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं | इस स्थान में “माँ दूनागिरी” वैष्णवी रूप में पूजी जाती है | दूनागिरी मंदिर की मान्यता यह भी है कि इस महाशक्ति के दरबार में जो शुद्ध बुद्धि से आता है और सच्चे मन से कामना करता है , वह अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र , घंटिया , शंखचढाते है | मंदिर में लगी हुई हजारो घंटिया प्रेम , आस्था और विश्वास की प्रतीक है, जो भक्तों का माँ दूनागिरी के प्रति है। दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है | प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति का जलना मंदिर की एक विशेषता है | दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है | यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है | जय माता दी 🙏 शेयर करे ताकि अन्य लोगों तक पहुंच सके और हमारी संस्कृति का प्रचार व प्रसार हो सके ॥। शेयर और कमेंट करना न भूले | देवभूमि उत्तराखंड के रंग यूथ उत्तराखंड के संग🙏 टीम यूथ उत्तराखंड जय देवभूमि उत्तराखंड Share on Facebook Share Share on TwitterTweet Share on Pinterest Share Share on LinkedIn Share Share on Digg Share