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कल्पेश्वर मन्दिर जहां पूरी होती हैं मन की इच्छा

कल्पेश्वर मन्दिर उत्तराखण्ड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मन्दिर उर्गम घाटी में समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस मन्दिर में ‘जटा’ या हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेवों में से एक भगवान शिव के उलझे हुए बालों की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर मन्दिर ‘पंचकेदार’ तीर्थ यात्रा में पाँचवें स्थान पर आता है। वर्ष के किसी भी समय यहाँ का दौरा किया जा सकता है। इस छोटे-से पत्थर के मन्दिर में एक गुफ़ा के माध्यम से पहुँचा जा सकता #कुंड तथा पवित्र जल मुख्य मन्दिर ‘अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के समीप एक ‘कलेवरकुंड’ है। इस कुंड का पानी सदैव स्वच्छ रहता है और यात्री लोग यहाँ से जल ग्रहण करते हैं। इस पवित्र जल को पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं।

यहाँ साधु लोग भगवान शिव को अर्घ्य देने के लिए इस पवित्र जल का उपयोग करते हैं तथा पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या भी करते हैं। तीर्थ यात्री पहाड़ पर स्थित इस मन्दिर में पूजा-अर्चना करते हैं। कल्पेश्वर का रास्ता एक गुफ़ा से होकर जाता है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए गुफ़ा के अंदर लगभग एक किलोमीटर तक का रास्ता तय करना पड़ता है, जहाँ पहुँचकर तीर्थयात्री भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं। #पुराण कथा शिवपुराण के अनुसार ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर वरदान देने वाले कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, तब से यह ‘कल्पेश्वर’ कहलाने लगा। केदार खंड पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है कि इस स्थल में दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या की थी, तभी से यह स्थान ‘कल्पेश्वरनाथ’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके अतिरिक्त अन्य कथानुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था। #कल्पगंगा कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है। कल्पगंगा को प्राचीन काल में हिरण्यवती नाम से पुकारा जाता था। इसके दाहिने स्थान पर स्थित तट की भूमि ‘दुरबसा’ भूमि कही जाती है। इस जगह पर ध्यानबद्री का मन्दिर है। कल्पेश्वर चट्टान के पाद में एक प्राचीन गुहा है, जिसके भीतर गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। कल्पेश्वर चट्टान दिखने में जटा जैसी प्रतीत होती है। देवग्राम के केदार मन्दिर के स्थान पर पहले कल्प वृक्ष था। कहते हैं कि यहाँ पर देवताओं के राजा इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने हेतु शिव-आराधना कर कल्पतरु प्राप्त किया था ।। के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मन्दिर उर्गम घाटी में समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस मन्दिर में ‘जटा’ या हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेवों में से एक भगवान शिव के उलझे हुए बालों की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर मन्दिर ‘पंचकेदार’ तीर्थ यात्रा में पाँचवें स्थान पर आता है। वर्ष के किसी भी समय यहाँ का दौरा किया जा सकता है। इस छोटे-से पत्थर के मन्दिर में एक गुफ़ा के माध्यम से पहुँचा जा सकता #कुंड तथा पवित्र जल मुख्य मन्दिर ‘अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के समीप एक ‘कलेवरकुंड’ है। इस कुंड का पानी सदैव स्वच्छ रहता है और यात्री लोग यहाँ से जल ग्रहण करते हैं। इस पवित्र जल को पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं। यहाँ साधु लोग भगवान शिव को अर्घ्य देने के लिए इस पवित्र जल का उपयोग करते हैं तथा पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या भी करते हैं। तीर्थ यात्री पहाड़ पर स्थित इस मन्दिर में पूजा-अर्चना करते हैं। कल्पेश्वर का रास्ता एक गुफ़ा से होकर जाता है।

 

 

 

मन्दिर तक पहुँचने के लिए गुफ़ा के अंदर लगभग एक किलोमीटर तक का रास्ता तय करना पड़ता है, जहाँ पहुँचकर तीर्थयात्री भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं। पुराण कथा शिवपुराण के अनुसार ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर वरदान देने वाले कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, तब से यह ‘कल्पेश्वर’ कहलाने लगा। केदार खंड पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है कि इस स्थल में दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या की थी, तभी से यह स्थान ‘कल्पेश्वरनाथ’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके अतिरिक्त अन्य कथानुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था। #कल्पगंगा कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है। कल्पगंगा को प्राचीन काल में हिरण्यवती नाम से पुकारा जाता था। इसके दाहिने स्थान पर स्थित तट की भूमि ‘दुरबसा’ भूमि कही जाती है। इस जगह पर ध्यानबद्री का मन्दिर है। कल्पेश्वर चट्टान के पाद में एक प्राचीन गुहा है, जिसके भीतर गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। कल्पेश्वर चट्टान दिखने में जटा जैसी प्रतीत होती है। देवग्राम के केदार मन्दिर के स्थान पर पहले कल्प वृक्ष था। कहते हैं कि यहाँ पर देवताओं के राजा इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने हेतु शिव-आराधना कर कल्पतरु प्राप्त किया था ।।कल्पेश्वर मन्दिर’ उत्तराखण्ड में स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मन्दिर ‘पंचकेदार’ तीर्थ यात्रा में पाँचवें स्थान पर आता है।

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